________________ जघन्य अश बन्ध का कारण नही होता है ऐसा भगवान उमास्वामी ने कहा है। प्रश्न १७४-कर्म किसे कहते हैं और वे कितने हैं ? उत्तर-आत्मस्वभाव के प्रतिपक्षी स्वभाव को धारण करने वाले निमित्तरूप कार्माणवर्गणा स्कन्धरूप परिणमन को द्रव्यकर्म कहते हैं / वे 8 हैं, ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र, अन्तराय। प्रश्न १७५-द्रव्यकर्म के मूल भेद कितने हैं ? उत्तर-दो है-(१) घातिकर्म (2) अघातिकर्म / प्रश्न १७६-घातिकर्म किसे कहते हैं व कितने हैं ? उत्तर-जो जीव के अनुजीवी गुणो के घात मे निमित्त मात्र कारण है उन्हे घातिया कर्म कहते हैं। घाति कर्म चार हैं, ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय। प्रश्न १७७-अघातिकर्म किसे कहते है और कितने हैं ? उत्तर-(१) जो आत्मा के अनुजीवी गुणो के घात मे निमित्त नही है उन्हे अघाति कर्म कहते हैं। (2) जो आत्मा को पर वस्तु के सयोग मे निमित्त मात्र कारण हो उन्हे अघाति कर्म कहते हैं। (3) जो आत्मा के प्रतिजीवी गुणो के घात मे निमित्त मात्र हो उन्हे अघाति कर्म कहते हैं / अघाति कर्म चार है, वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र / प्रश्न १७८-द्रव्यकर्म की पुण्य और पापरूप प्रकृति कौन-कौन सी हैं ? उत्तर-घाति कर्म प्रकृति सब पापरूप ही हैं और अघाति कर्मों मे पुण्य-पाप का भेद पडता है। प्रश्न १७६-घाति पाप प्रकृति होने पर भी जीव पुण्यरूप परिणमन करे क्या ऐसा होता है ? उत्तर-मोहनीय पाप प्रकृति ही है, परन्तु मोहनीय पाप प्रकृति के उदय होने पर जीव पुण्य भाव करे तो उस मोहनीय की पापरूप