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अनुभव हुए बिना २८ मूलगुण का पालनादि मुनिपने के लिए कार्यकारी है, या नहीं ?
उत्तर - कार्यकारी नहीं बल्कि अनर्थकारी है, क्योंकि 'मोक्षमार्ग प्रकाशक' में महाव्रतादि पालते हुए, प्रभव्य, मिध्यादृष्टि, पापी कहा है ।
प्रश्न ( ८३ ) -- अपना अनुभव हुए बिना अणुव्रत महाव्रतादि कार्यकारी नही ऐसा कहीं समयसार, प्रवचनसार में कहा है ?
उत्तर- (१) प्रवचनसार में द्रव्यलिंगी मुनि को गा० २७१ 'संसार तत्त्व' कहा है ।
( २ ) समयसार में अपने श्रापका अनुभव हुऐ बिना नपुसंक कुशील, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, पापी कहा है ।
प्रश्न ( ८४ ) - अपनी श्रात्मा के आश्रय लिये बिना, शुभभाव कार्यकारी नहीं है ऐसा कहीं समयसार कलशटीका में लिखा है ?
उत्तर - कलश १४२ में लिखा है कि “ • विशुद्ध शुभो - पयोगरुप परिणाम, जैनोक्त सूत्र का अध्ययन, जीवादि द्रव्यो के स्वरुप का बारम्बार स्मरण, पंच परमेष्ठी की भक्ति इत्यादि हैं जो अनेक क्रियाभेद उनके द्वारा बहुत घटा टोप करते हैं, तो करो तथापि शुद्ध स्वरुप की प्राप्ति होगी सो तो शुद्ध ज्ञान द्वारा होगी ........ अज्ञानी को परम्परा- आगे मोक्ष का कारण होगी ऐसा भ्रम उत्पन्न होता है सो झूठा है। अहिंसादि महाव्रत का पालन, महापरीषहों का सहना बहुत काल पर्यन्त मरके चूरा होते