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________________ ॥ श्री बीतरामाय नमः॥ द्रव्य, गुण पर्याय हा जैन सिद्धान्त प्रवेश रलमाला तीसरा भाग मंगलाचरण 'मंगलं भगवान वोरो, मगलं गोतमो गयो मंगल कुन्दकुन्दार्यो, जैनधर्मोऽस्तु मंगलम् ॥१॥ तत्प्रति प्रोति चित्त न येन वार्तापि हि श्रुता। निश्चितं स भवेद्भव्यो, भावि निर्वाण भाजनम् ॥ पद्मनन्दि पंच विशतिका वस्तु विचारत ध्यावते, मन पावै विश्राम । रस स्वावत सुख ऊपज, अनुभव याको नाम । अनुमव चितामनि रतन, अनुभव है रस कूप । अनुभव मारग मोक्ष को, अनुभव मोक्ष स्वरुप । भेदज्ञान साबू भयो, समरस निरमल नोर । धोबो अंतर आत्मा,धौवे निज गुरण चोर ॥नाटक समयसार । जो कर सको तो ध्यानमय, प्रतिक्रमरण आदिक कीजिए। यदि शक्ति हो नहिं तो अरे. श्रद्धान निश्चय कीजिए । दगज्ञान-लक्षितं और शाश्वत मात्र-प्रात्मा मम परे । अरू शेष सब संयोग लक्षित भाव मुझसे हैं परे ।नियमसार। शास्त्रों बड़े प्रत्यक्ष प्रादि थो, जाणतो जे अर्थ ने। तसु मोह पामे नाश निश्चय, शास्त्र समध्ययनीय है। जे ज्ञान रुप निज आत्मने, परने वली निश्चय बड़े॥ द्रव्यत्व थी संबध्द जाणे, मोहनोक्षय ते करे ।।
SR No.010118
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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