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उत्तर - सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति देव, गुरु, शास्त्र की ओर देखने से कभी भी नहीं होगी क्योकि जिसमें जो चीज हो उसी में से वह आती है ।
प्रश्न (५७ ) -- सम्यग्ज्ञान के लिए ११ अंग नौ पूर्व का अभ्यास करे तो क्या सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति नही होगी ?
उत्तर - कभी भी नहीं होगी क्योकि समयसार गा० २७४ में कहा है कि.
"मोक्ष की श्रद्धा विहीन, अभव्य जीव शास्त्रो पढ़ें। पर ज्ञान की श्रद्धा रहित को, पठन ये नहि गुण करें ।। २७४ | तथा गा० ३१७ में लिखा है कि
“सद्रीत पढकर शास्त्र, भी प्रकृति अभव्य नही तजे । ज्यो दूध गुड़ पीता हुआ भी, सर्प नहि निर्विष बने” ।३१७ | जब तक जीव को आत्म ज्ञान नहीं है सब शास्त्रों का पठन मिथ्या ज्ञान है ज़रा भी कार्यकारी नहीं है ।
प्रश्न (५८) - सम्यक् चारित्र के लिए किसका श्राश्रय करें तो सम्यक् चारित्र की प्राप्ति हो ?
उत्तर - अनन्त गुणों के प्रभेद पिण्ड अपने ज्ञायक भगवान का आश्रय करने से ही सम्यक् चारित्र की प्राप्ति होती है ।
प्रश्न (५६) - क्या बाहरी क्रिया से सम्यक् चारित्र की प्राप्ति नहीं होती ?
उत्तर - बाहरी क्रिया मैं करता हूं इस मान्यता से तो मिथ्यात्व का महान पाप होता है, सम्यक् चारित्र की तो बात ही नहीं है।