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( ५१ ) चागें गतियों के सैनी जीव तथा पंच परमेष्ठी सब गुणों के समूह है क्योंकि यह सब जीव द्रव्य हैं।
प्रश्न (१५)-क्या दो इन्द्रिय वाले जीव और सिद्ध भगवान में
समान गुण हैं ? उत्तर–हां भाई, चाहे कोई भी जीव हो चाहे निगोद का हो, दो
इन्द्रिय वाला हो या सिद्ध हो उन सबमें गुण समान ही हैं।
गुणों की संख्या में जरा भी हेर फेर नहीं है। प्रश्न (१६)--यह कहाँ लिखा है कि निगोदिया जीव और सिद्ध
जीव में समान गुण हैं ? उत्तर-(१) श्री नियमसार जी गाथा ४७-४८ में लिखा है कि
"है सिद्ध जैसे जीव, त्यों भवलीन ससारी वही। गुण पाठ से जो है अलंकृत, जन्म मरण जरा नही ॥४७ बिनदेह अविनाशी, अतीन्द्रिय, शुद्ध निर्मल सिद्धज्यों। लोकान में जैसे बिराजे, जीव हैं भवलीन त्यों ॥४८॥
इन श्लोकों में शुद्ध द्रव्यार्थिकनय से संसारी जीवों में, मुक्त जीवों में कोई अन्तर नहीं है इसलिए अपने स्वभाव का आश्रय लेकर सिद्ध दशा प्रगट करना पात्र जीव का लक्षण है। (२) द्रव्यसंग्रह गा० १३ में “सव्वे सुद्धा हु सुद्ध णया" ___ शुद्धनय से सभी जीव वास्तव में शुद्ध हैं। यहां पर भी शुद्धपारिणामिक भाव जो द्रव्यरुप है वह अविनाशी है इसलिए वही पाश्रय करने योग्य है इसी के आश्रय से धर्म की शुरुपात, वृद्धि और पूर्णता होती है, पर और विकार के प्राश्रय से नहीं।