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( ४० ) उत्तर - अनादिनिधन वस्तु जुदी जुदी अपनी अपनी मर्यादा
पूर्वक परिणमे है, कोई किसी के आधीन नहीं तथा कोई पदार्थ कोई का परिणमाया परिणमता नहीं। यह
पदार्थों का स्वरूप है। प्रश्न (१०१)--अज्ञानी क्या करता है ? उत्तर- अज्ञानी अपनी इच्छानुसार परिणमाया चाहता है यह
कोई उपाय नही, यह तो मिथ्यादर्शन है। अज्ञानी पदार्थों को अन्यथा मानकर अन्यथा परिणमाना चाहता है इससे जीव स्वयं दुखी होता है ।
प्रश्न (१०२)-साचा उपाय क्या है ?
उत्तर-पदार्थों को यथार्थ मानना और यह पदार्थ मेरे परिण
माने से परिणमेगें नहीं ऐसा मानना यह ही दु:ख दूर करने का उपाय है। भ्रमजनित दुःख का उपाय भ्रम दूर करना यह ही है। भ्रम दूर होने से सम्यक श्रद्धा
होती है यह ही साचा उपाय जानना चाहिए। प्रश्न (१०३)--प्रत्येक द्रव्य अपना अपना स्वतंत्र परिणमन
करता है ऐसा कहीं समयसार में भी पाया है क्या ?
उत्तर-श्री समयसार गाथा ३ में पाया है कि "वे सब पदार्थ
अपने द्रध्य में अन्तर्मग्न रहने वाले अपने अनन्त धर्मों के चक्र को (समूह को) चुम्बन करते हैं-स्पर्श करते हैं तथापि वे परस्पर एक दूसरे को स्पर्श नहीं करते हैं।