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(२०४) भी क्षयोपशम भाव एक समय पर्यन्त स्वतत्र होता है। प्रश्न (४२१)-जब जीव में भावकर्म हुआ तब द्रव्यकर्म होता
है ऐसा कही लिखा है ? उत्तर-(१) प्रात्मावलोकन में लिखा है कि "भाववेदनी,
भावप्राय, भावनाम, भावगोत्र उसके सामने द्रव्यवेदनी, द्रव्यप्रायु, द्रव्यनाम, द्रव्यगोत्र होता है। (२) प्रवचनसार गा० १६ की टीका के अन्त में लिखा है कि "द्रव्य तथा भाव घातिकर्मों को नष्ट करके स्वयमेव
आविर्भूत हुआ। प्रश्न (४२२)-जब जीव में भावकर्म होता है तब द्रव्यकर्म स्वय
__ मेव अपनी योग्यता से होता है इससे हमें क्या लाभ है ? उत्तर -११) एक द्रव्य का दूसरे द्रव्य से किसी भी प्रकार का
सम्बंध नहीं है। (२) प्रत्येक द्रव्य में अनन्त अनन्त गुण है, प्रत्येक गुण में हर समय एक पर्याय का व्यय और दूसरी पर्याय की उत्पत्ति,गुण वैसा का वैसा रहता है । ऐसा प्रत्येक द्रव्य के प्रत्येक गुण में अनादि से हुआ है, वर्तमान में हो रहा है और भविष्य में ऐसा ही होता रहेगा। ऐसा सब द्रव्यों में द्रव्यगुण पर्यायस्वरुप पारमेश्वरी व्यवस्था है; इसे तीर्थकर देव आदि कोई भी हेर फेर नहीं कर सकते हैं ऐसा जानकर, अपने त्रिकाली भगवान की दृष्टि करके सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति करके क्रम से मोक्ष
का पथिक बनना प्रत्येक पात्र जीव का परम कर्तव्य है। अनादि से अनन्त काल तक जिन, जिनवर और जिनवर वृषभों ने पर्याय का ऐमा स्वरूप बताया है बता रहे है, और बतायेंगे उन सबके चरणों में अगणित नमस्कार ॥ ॥ जय गुरुदेव ॥