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रुक्षत्व परिणमित होता हुआ अकेला परमाणु ही बद्ध
और मुक्त होता है उसी प्रकार" विचारो: इसमे बताया है कि प्रात्मा अपने आप बंधता है
और अपने आप मुक्त होता है यह निश्चयनय का कथन है। परमाणु भी अपनी स्पर्श गुण की स्निग्ध और रुक्षत्व के कारण दो से ज्यादा होने पर बधता है और दो से कमी होने
पर छुटता है। प्रश्न (३७३) --जीव और पुद्गल के व्यवहारनय के विषय में
कोई शास्त्र का प्राधार बताइये? उत्तर - श्री प्रवचनसार परिशिष्ट में ४४ वें नय में बताया है
कि व्यवहारनय से आत्मा, अँध और मोक्ष में पुद्गल के साथ द्वैत को प्राप्त होता है । जैसे परमाणु के बंध में वह परमाणु अन्य परमाणु के साथ संयोग के पाने रुप द्वैत को प्राप्त होता है और परमाणु के मोक्ष में वह परमाणु अन्य परमाणु से पृथक होने पर द्वैत को पाता है उसी प्रकार" ऐसा व्यवहारनय से जीव और पुद्गल
के लिए कथन किया है। प्रश्न (३७४)--जीवबध, पुद्गलबंध और उभयबध के विषय
में कहीं और कुछ स्पष्ट कहा ह तो बताओ? उत्तर- प्रवचनसार गा० ५७७ में तथा टीका में लिखा है कि
"(१) कर्मों का जो स्निग्धता रुक्षता रुप स्पर्श विशेषों के साथ एकत्व परिणाम है सो केवल पुद्गलबंध है। (२) जीव का औपाधिक मोह राग दृष रुप पर्यायो के साथ जो एकत्व परिणाम है सो केवल जीवबंध है। (३) जीव तथा कर्म पुद्गलों के परस्पर परिणाम के निमित्त मात्र से जो विशिष्टितर परस्पर अवगाह है सो