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( १४९ ) अर्थ १] सत्=विद्यमान वस्तु। (२) असत् अविद्यमान वस्तु (३) अविशेषात् = इन दोनों का यथार्थ विवेकना होने से यहच्छ (विपर्यय) उपलब्धेः = अपनी मनमानी इच्छा अनुसार कल्पनाएं करने से वह ज्ञान मिथ्या ज्ञान है [४] उन्मत्तवत्' शराब पिये हुए के समान मिथ्यादृष्टि को कारणविपरीतता, स्वरूपविपरीतता
और भेदाभेद विपरीतता तीनो वर्तती है इसलिए मिथ्या
दृष्टि का सब ज्ञान झूठा है। प्रश्न । १०६) मिथ्यादष्टि का सर्व ज्ञान झूठा है तब उसे
सच्चा करने के लिए क्या करना चाहिए? उत्तर - सच्चे धर्म की यह परिपाटी है कि पहले जीव सम्य
क्त्व प्रगट करता है, पश्चात् व्रतरुप शूभभाव होते हैं। और सम्यक्त्व स्व-पर का श्रद्धान, होने पर होता है तथा स्व-पर का श्रद्धान द्रव्यानुयोग का अभ्यास करने से होता है। इसलिए पहले जीव को द्रव्यानुयोग अनुसार श्रद्धा करके सम्यग्दृष्टि होना चाहिए, तब मिथ्यादृष्टि का सर्व ज्ञान जो मिथ्यात्व अवस्था में झूठा था, तब सम्यक्त्व होने पर उसका सारा
ज्ञान सच्चा हो जाता है।। प्रश्न (१४७)-बिस्तरा' क्या है ? उत्तर-(१) समानजातीय द्रव्य पर्याय है। (२) प्राकार की अपेक्षा
विचार किया जावे तो विभाव व्यंजन पर्याय है (३) रंग
की अपेक्षा विचार किया जावे तो विभाव अर्थ पर्याय है। प्रश्न (१४८)-'बिस्तरा' सामानजातीय द्रव्य पर्याय कब कहा
जा सकता है ?