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(१३५) प्रश्न (५४)--प्रत्येक द्रव्य में अर्थपर्यायें कितनी होती हैं। उत्तर--प्रत्येक द्रव्य में अर्थ पर्यायें अनन्त होती हैं क्योंकि
प्रदेशत्व गुण को छोड़कर वाकी गुणों के परिणमन को
अर्थपर्याय कहते हैं। प्रश्न (५५)--एक प्रात्मा में व्यंजनपर्याय कितनी हैं ? उत्तर-एक ही है क्योंकि एक आत्मा में एक प्रदेशत्व गुण हैं
और प्रदेशत्वगुण के परिणमन को व्यांजन पर्याय
कहते हैं। प्रश्न (५६,--एक प्रात्मा में अर्थपर्यायें कितनी होती हैं ? उत्तर- एक प्रात्मा में अनन्त गुण हैं उनमें एक प्रदेशत्व गुण
को छोड़कर बाकी जितने गुण हैं उतनी अर्थ पर्यायें एक आत्मा में होती है क्योंकि प्रदेशत्व गुण को छोड़कर बाकी गुणों के परिणमन को अर्थपर्यायें
कहते हैं। प्रश्न (५७)-एक क्षेत्रावगाही प्रौदारिक शरीर में व्यंजनपर्यायें
कितनी हैं। उत्तर-जितने परमाणु हैं, उतनी ही व्यंजनपर्यायें है, क्योंकि
एक परमाणु में एक व्यंजन पर्याय होती है। प्रश्न (५८)--जीव द्रव्य में विभावव्यंजन पर्याय कहाँ तक होती
उत्तर-पहले गुणस्थान से लेकर १४ वें गुणस्थान तक विभाव
व्यजन पर्याय होती हैं अर्थात् मात्र सिद्ध भगवान को