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( १२६ ) बिछा तो पर्याय को माना।
(२) मैंने बिछाया तो पर्याय को नहीं माना। प्रश्न (२८)-६ से लेकर २७ तक वाक्यों में त्रिकाली
से कार्य हुआ, पर से नहीं, ऐसा जानने से क्या
लाभ हुना ? उत्तर - अज्ञानी जीव अनादि से एक एक समय करके पर से
व निमित्त से कार्य हमा-ऐसी मान्यता से निमित्त मिलाने में पागल हो रहा था। जब उसे पता चला, त्रिकाली में से कार्य होता है तो पर में से कर्ता-भोक्ता बुद्धि का
अभाव होकर धर्म की प्राप्ति हो जाती है। प्रश्न (२६)-पर्याय का सच्चा ज्ञान किसे होता है, और
किसको नहीं ? उत्तर-पर्याय का सच्चा ज्ञान चौथे गुणस्थान से लेकर सिद्ध
दशा तक वाले जीवों को ही होता है, मिथ्यादृष्टियों को
पर्याय का सच्चा ज्ञान नहीं होता है। प्रश्न (३०)-द्रव्यलिंगी मुनि ने ११ अंग : पूर्व का ज्ञान किया
तो क्या द्रव्यलिंगी मुनि को पर्याय का सच्चा ज्ञान
महीं था? उत्तर-द्रव्यलिंगी का ११ प्रग ६ पूर्व का ज्ञान जो है वह
मिथ्या ज्ञान है वह ज्ञान नहीं है। इसलिए द्रव्यलिंगी मुनि को पर्याय का सच्चा ज्ञान नहीं है क्योंकि सम्यग्दर्शन हुआ
बिना पर्याय का सच्चा ज्ञान नहीं हो सकता है। प्रश्न (३१)-अपना ज्ञान हुवे बिना शास्त्र का ज्ञान मिथ्याज्ञान
है, कार्यकारी नहीं है, ऐसा कहीं योगसार में पाया है ?