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(७) - भेद कर्म का पक्ष । (८) - प्रभेद कर्म का पक्ष ।
(E) भेदाभेद कर्म का पक्ष ।
इस नौ प्रकार के पक्ष में अपनेपने की बुद्धि यही गृहीत मिथ्यादर्शन है ।
प्रश्न ( १७ ) - गृहीन मिथ्यादर्शन किसे कहते हैं ?
उत्तर- "जो कुगुरु कुदेव कुधर्म सेव, शेषं चिर दर्शन मोह एव" अर्थात् कुगुरु, कुदेव और कुधर्म का सेवन ही गृहीत मिथ्यादर्शन कहलाता है।
प्रश्न ( १८ ) - गृहीत मिथ्याज्ञान किसे कहते हैं ?
उत्तर- "याही प्रतोतिजुत कछुक ज्ञान, सो दुखदायक प्रज्ञान जान" अर्थात् प्रगृहीत मिथ्यादर्शन सहित जो कुछ ज्ञान है वह दुःखदायक गृहीत मिथ्याज्ञान है ।
प्रश्न ( १९ ) - गृहीत मिथ्याज्ञान किसे कहते हैं ?
उत्तर "एकान्तवाद - दूषित समस्त विषयादिक पोषक प्रशस्त कपिलादि रचित श्रुतको अभ्यास, सो है कुबोध बहु देन त्रास" अत् वस्तु में सत्-असत् नित्य प्रनित्य, एकअनेक अनन्त धर्म हैं उसमें से किसी भी एक ही धर्म को पूर्ण वस्तु कहने के कारण मिथ्या है ऐसे विषय कषाय की पुष्टि करने वाले ( दया दान अणुव्रत महाव्रतादिक शुभराग जो कि पुण्यास्त्रव हैं प्रादि शुभभावों से धर्म होना बतलावे) कुगुरुयों के रचे हुए सर्व प्रकार के मिध्याशास्त्रों