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( १२० ) उत्तर- "इत्यादि" शब्द और भी अनेक विशेष गुण हैं यह
बताता है ? प्रश्न (८४)-प्रत्येक गुण के कार्य क्षेत्र की मर्यादा उसी के
अन्दर है, उससे बाहर नहीं है इसे जरा खोलकर
समझाइये? उत्तर-(१) ज्ञान गुण का कार्य ज्ञान गुण में ही होगा श्रद्धा
चारित्र आदि में नहीं होगा; (२) श्रद्धागुण का कार्य श्रद्धा गुण में ही होगा ज्ञान
चारित्रादि में नहीं होगा; (३) चारित्र गुण का कार्य चारित्र गण में ही होगा
ज्ञान श्रद्धादि में नहीं होगा; पुद्गल में स्पर्श, रस गंध, स्पर्शादिक है परन्तु :(४) स्पर्श गुण का कार्य स्पर्शगुण में ही होगा रस
गंधादि में नहीं। (५) रस गुण का कार्य रस गुण में ही होगा स्पर्श
वर्णादि में नहीं होगा। (६) गतिहेतुत्व गुण का कार्य गतिहेतुत्व में ही होगा
बाकी गुणों में नहीं । तात्पर्य यह है कि प्रत्येक
गुण का कार्य उससे बाहर नहीं होता है। प्रश्न (८५)-एक गुण का दूसरे गुण के कार्य से सम्बंध क्यों
नहीं है ? उत्तर-प्रत्येक गुण का कार्य अलग अलग है अर्थात् भाव में
अन्तर होने से सम्बंध नहीं है। प्रश्न (८६)-जब एक गुण की पर्याय का उसी गुण की भूत
भविष्य की पर्याय से सम्बंध नहीं है तो एक द्रव्य का