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________________ लेखक की भूमिका अनादिकाल से परमगुरु सर्वज्ञदेव, अपरगुरु गणधरादि ने जिस वस्तुस्वरूप का वर्णन किया है, वही वस्तुस्वरूप पूज्य श्री कानजी स्वामी बतला रहे थे। उसी वस्तुस्वरूप का ज्ञान जो मेरे ज्ञान मे आया, उसे मैं सदैव प्रश्नोत्तरो के रूप मे लेखबद्ध करता रहा था। धीरे-धीरे सरल प्रश्नोत्तरो के रूप मे समस्त जैन-शासन का सार लेखबद्ध हो गया। मेरे विचार मे सत्य बात समझ मे न आने का मुख्य कारण जिनेन्द्रदेव की आज्ञा का पता न होना और जिनागम का रहस्य दृष्टि मे न आने से अपनी मिथ्या मान्यताओ के अनुसार शास्त्रो का अभ्यास करना है। जिसके फलस्वरूप अज्ञानी जीव स्वय की मिथ्यावुद्धि से ससार मार्ग का श्रद्धान-ज्ञान-आचरण करते हैं। वस्तुत किसी भी अनुयोग के जैन शास्त्र का स्वाध्याय करने से पूर्व यदि निम्न प्रश्नोत्तरो का मनन कर लिया जाय तो शास्त्रो का सही अर्थ समझने मे सुविधा रहेगी तथा ससार मार्ग से बचने का अवकाश रहेगा। प्रश्न १-प्रत्येक वाक्य मे से चार बातें कौन-कौनसी निकालने से रहस्य स्पष्ट समझ मे पा सकता है ? उत्तर-(१) जिन, जिनवर और जिनवरवृषभ क्या कहते है ? (२) जिन-जिनवर और जिनवरवृषभो के कथन को सुनकर ज्ञानी क्या जानते हैं और क्या करते है ? (३) जिन-जिनवर और जिनवरवृषभो के कथन को सुनकर सम्यक्त्व के सन्मुख मिथ्यादृष्टि पात्र भव्य जीव क्या जानते हैं और क्या करते हैं ? (४) जिन-जिनवर और
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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