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________________ ( ५२ ) प्रश्न १६५ - त्रिकाली ध्रुव तो अनादिअनन्त है और कार्य एक समय का है उसमें से कार्य कैसे ? हुआ उत्तर - निमित्त, पर द्रव्यों से अलग करने की अपेक्षा त्रिकाली उपादान को कार्य का कर्ता कहा है । वास्तव मे उत्पाद उस समय पर्याय की योग्यता से ही होता है । प्रश्न १६६ - केवलज्ञान उस समय पर्याय की योग्यता से हुआ, ऐसा मानने से किस-किस से दृष्टि हट गई ? उत्तर- वज्रवृपभनाराचसहनन से (२) चोथे काल से ( ३ ) ज्ञानावरणीय कर्म के अभाव से ( ४ ) आत्मा से (५) ज्ञान गुण से (६) श्रुत ज्ञान से दृष्टि हट जाती है । प्रश्न १६७ - क्षायिक सम्यक्त्व उस समय पर्याय की योग्यता से होता है, ऐसा मानने से किस-किस से दृष्टि हट गई ? उत्तर --- (१) देव - गुरु से (२) दर्शन मोहनीय के उपशमादि से (३) आत्मा से (४) श्रद्धा गुण से (५) क्षयोपशम सम्यक्त्व से दृष्टि हट गई । प्रश्न १६८ - क्या उस समय पर्याय की योग्यता से ही कार्य होता है ? उत्तर - हाँ, उस समय पर्याय की योग्यता से ही कार्य होता है, ऐसा निर्णय होते ही दृष्टि अपने त्रिकाली स्वभाव पर आवे, निर्णय सच्चा है, अन्यथा झूठा है । • अधिकरण कारक का स्पष्टीकरण प्रश्न १६६ -- अधिकरण कारक किसे कहते हैं ? उत्तर - जिसमे अथवा जिसके आधार से कर्म (कार्य) किया जावे उसे अधिकरण कारक कहते है । प्रश्न २०० - अनादि से अज्ञानी ने कार्य के लिए किसका आधार माना है और उसका फल क्या रहा
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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