________________ ( 241 ) मिले, परन्तु एक सम्यग्दर्शन के बिना यह मूर्ख जीव (अज्ञान भाव से) भटक रहा है। निमित्त-सम्यकदर्श भये कहा त्वरित मुक्ति में जाहिं। आगे ध्यान निमित्त है ते शिव को पहचाहिं // 38 अर्थ-सम्यग्दर्शन होने से क्या जीव तत्काल मोक्ष मे चला जाता है ? नही। आगे भी ध्यान निमित्त है। जो मोक्ष मे पहुचता है। यह निमित्त का तर्क है। उपादान–छोर ध्यान की धारणा मोर योग की रीत / तोरि कर्म के जाल को जोरि लई शिव प्रीत // 36 अर्थ-उपादान कहता है कि ध्यान की धारणा को छोडकर, योग की रीति को समेट कर, कर्म जाल को तोडकर जीव अपने पुरुषार्थ के द्वारा शिवानन्द की प्राप्ति करते हैं। निमित्त तब निमित्त हार्यो तहां अब नहिं जोरि बसाय / उपादान शिव लोक में पहच्यो कर्म खपाय // 40 अर्थ-तब निमित्त हार गया। अब कुछ जोर नहीं करता और उपादान कर्म का क्षय करके शिव लोक मे पहुच गया। उपादान-उपादान जीत्यो तहाँ, निज बलकर परकाश / सुख अनन्त ध्रुव भोगवे अंत न वरन्यो तास // 41 अर्थ-इस प्रकार निज बल का प्रकाश कर उपादान जीता (वह उपादान अब) उस अनन्त ध्र व सुख को भोगता है जिसका अन्त नही है। तत्व स्वरूप-उपादान अरु निमित्त ये, सब जीवन पं वीर। जो निज शक्ति संभाल हो सो पहुँचे भवतीर // 42 अर्थ-उपादान और निमित्त सभी जोवो के है किन्तु जो वीर अपनी उपादान शक्ति की सम्भाल करते है वे भव के पार को प्राप्त होते हैं।