________________ ( 226 ) कर्ता वह खट्टी-खारी अवस्था नहीं है। कितनी स्वतन्त्रता || उसी प्रकार शरीर मे रोगादि जो कार्य हो उसके कर्ता वे पुद्गल हैं, आत्मा नहीं और उस शरीर की अवस्था का जो ज्ञान हुआ उसका कर्ता आत्मा है। आत्मा कर्ता होकर ज्ञान परिणाम को करता है परन्तु शरीर की अवस्था को वह नहीं करता। यह तो परमेश्वर होने के लिए परमेश्वर के घर की वात है। परमेश्वर सर्वज्ञदेव कथित यह वस्तुस्वरूप है। जगत मे चेतन या जड अनन्त पदार्थ अनन्तरूप से नित्य रहकर अपने वर्तमान कार्य को करते हैं। प्रत्येक परमाणु मे स्पर्श-रग आदि अनन्त गुण, स्पर्श की चिकनी आदि अवस्था; रग की काली आदि अवस्था, उस उस अवस्था का कर्ता परमाणुद्रव्य है। चिकनी अवस्था वह काली अवस्था की कर्ता नहीं है। इस प्रकार आत्मा मे-प्रत्येक आत्मा मे अनन्त गुण हैं; ज्ञान मे केवलज्ञान पर्यायरूप कार्य हुमा, आनन्द मे पूर्ण आनन्द प्रगट हुआ उसका कर्ता आत्मा स्वय है। मनुष्य-शरीर अथवा स्वस्थ शरीर के कारण वह कार्य हुआ ऐसा नहीं है,पूर्व की मोक्षमार्ग पर्याय के आधार से वह कार्य हुआ ऐसा भी नही है; ज्ञान और आनन्द के परिणाम भी एक-दूसरे के आश्रित नहीं हैं, द्रव्य ही परिणमित होकर उस कार्य का कर्ता हुमा है। भगवान आत्मा स्वय ही अपने केवलज्ञानादि कार्य का कर्ता है, अन्य कोई नही / -यह तीसरा बोल हुआ। (4) वस्तु को स्थिति सदा एक रूप [-फूटस्थ] नहीं रहती सर्वज्ञदेव द्वारा देखा हुआ वस्तु का स्वरूप ऐसा है कि वह नित्य अवस्थित रहकर प्रतिक्षण नवीन अवस्था रूप परिणमित होता रहता है। पर्याय बदले विना ज्यो का त्यो कूटस्थ हो रहे-ऐसा वस्तु का स्वरूप नही है। वस्तु द्रव्य-पर्याय स्वरूप है, इसलिए उसमें सर्वथा अकेलानित्यपना नहीं है, पर्याय से परिवर्तनपना भी है। वस्तु स्वय ही अपनी पर्याय रूप से पलटती है कोई दूसरा उसे परिवर्तित करे-ऐसा