________________ ( 222 ) परिणामी के आधार से हुए है। पूर्व के मन्दराग के आश्रय से अथवा वर्तमान मे शुभराग के आश्रय से वे सम्यग्दशन परिणाम नहीं हुए। यद्यपि राग भी है तो आत्मा का परिणाम, परन्तु श्रद्धा-परिणाम से राग परिणाम अन्य है, वे श्रद्धा के परिणाम राग के आश्रित नहीं हैं। क्योकि परिणाम परिणामी के ही आश्रय से होते है, अन्य के आश्रय से नहीं होते। उसी प्रकार चारित्र परिणाम मे-आत्मस्वरूप मे स्थिरता वह चारित्र का कार्य है, वह कार्य श्रद्धा परिणाम के आश्रित नही, ज्ञान के आश्रित नही, परन्तु चारित्रगुण धारण करने वाले आत्मा के ही आश्रित है / शरीरादि के आश्रय से चारित्र नहीं है / (1) श्रद्धा के परिणाम आत्मद्रव्य के आश्रित हैं; (2) ज्ञान के परिणाम आत्मद्रव्य के आश्रित हैं; (3) स्थिरता के परिणाम आत्मद्रव्य के आश्रित है। (4) आनन्द के परिणाम आत्मद्रव्य के आश्रित हैं। बस, मोक्ष मार्ग के सभी परिणाम स्व द्रव्याश्रित है, अन्य के आश्रित नहीं हैं, उस समय अन्य (रागादि) परिणाम होते हैं उनके आश्रित भी यह परिणाम नहीं है। एक समय मे श्रद्धा-ज्ञान-चारित्रा इत्यादि अनन्त गुणो के परिणाम वह धर्म, उनका आधार धर्मी अर्थात परिणमित होने वाली वस्तु है, उस समय अन्य जो अनेक परिणाम होते है उनके आधार से श्रद्धा इत्यादि के परिणाम नही हैं। निमितादि के आधार से तो नही है, परन्तु अपने दूसरे परिणाम के आधार से भो कोई परिणाम नहीं है। एक ही द्रव्य मे एक साथ होने वाले परिणाम मे भी एक परिणाम दूसरे परिणाम के आश्रित नही, द्रव्य के ही आश्रित सभी परिणाम हैं, सभी परिणामो रूप से परिणमन करने वाला द्रव्य ही है-अर्थात् द्रव्य सन्मुख लक्ष जाते ही सम्यक् पर्याये प्रगट होने लगती हैं।