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( १३७ ) उत्तर-कोई किसी भी द्रव्य को मिला नहीं सकता, क्योकि सब द्रव्य पृथक्-पृथक् है । निमित्त मिलाने की बुद्धि मिथ्यादृष्टियो की है।
प्रश्न २४-हम निमित्त क्यो नहीं मिला सकते हैं ?
उत्तर-(१) निमित्त और उपादान के कार्य का एक ही समय है (२) निमित्त-नैमित्तिक दो स्वतन्त्र द्रव्यो के एक समय की पर्यायो मे ही होता है। (३) छद्मस्थ एक समय की पर्याय पकड नही सकता है। (४) एक द्रव्य की पर्याय दूसरे द्रव्य की पर्याय मे अकिंचित्कर है। (५) किस समय किस का परिणमन नही होता ? सबका ही होता है। इसलिए निमित्त मिलाने की बुद्धि अनन्त ससार का कारण है।
प्रश्न २५-निमित्त का ज्ञान क्यो कराते हैं ?
उत्तर--(१) मिथ्याष्टियो ने अनादि से एक-एक समय करके निमित्त का आश्रय माना है। (२) निमित्त पर द्रव्य है उससे तेरा सम्बन्ध नही है। ऐसा ज्ञान कराकर स्वभाव का आश्रय ले, तो तेरा भला हो। (३) निमित्त का आश्रय छुडाने के लिए निमित्त का ज्ञान कराया है। (४) जहाँ उपादान होता है वहाँ निमित्त होता ही है इसलिए निमित्त का ज्ञान कराया है।
प्रश्न २६-निमित्त और उपादान के विषय मे क्या-क्या बातें याद रखनी चाहिये ? __उत्तर-(१) जब योग्यतावाला क्षणिक उपादानकारण होता है वहाँ पर नियम से त्रिकाली उपादानकारण, अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान कारण और निमित्तकारण नियम से होता है। कोई ना होवे, ऐसा होता ही नही है । (२) उपादान का कार्य उपादान से ही होता है, निमित्त से नहीं। (३) जितने भी प्रकार के निमित्त हैं, वे सब उपादान के लिए मात्र धर्म द्रव्य के समान ही हैं। (४) जब उपादान होता है तब निमित्त होता ही है ऐसी वस्तु स्थिति है। (५) निमित्त कारण उपादान के प्रति निश्चय से (वास्तव मे) अकिंचित्कर (कुछ करने वाला) है, इसीलिए उसे निमित्त मात्र, बलाधान मात्र,