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प्रश्न २३० - क्या निरपेक्षता सिद्ध किये बिना सापेक्षता नहीं होती है ?
उत्तर- नही होती है, क्योकि - (१) निरपेक्षता के बिना सापेक्षता का यथार्थ ज्ञान नही होता है, (२) अभेद के बिना भेद का यथार्थ ज्ञान नहा होता है, (३) निश्चय के बिना व्यवहार का यथार्थ ज्ञान नही होता है, (४) उपादान के बिना निमित्त का यथार्थ ज्ञान नही होता है, (५) भूतार्थ के विना अभूतार्थ का यथार्थ ज्ञान नही होता है, (६) यथार्थ के बिना उपचार का यथार्थ ज्ञान नही होता है, (७) स्व के बिना पर का यथार्थ ज्ञान नही होता है, (८) स्वाश्रित के विना पराश्रित का यथार्थ ज्ञान नही होता है, (६) मुख्य के विना गौण का यथार्थ ज्ञान नही होता है, (१०) द्रव्यार्थिक के बिना पर्यायार्थिक का यथार्थ ज्ञान नही होता है, (११) अहेतुक के बिना सहेतुक का यथार्थ ज्ञान नही होता है, (१२) नित्य के बिना अनित्य का यथार्थ ज्ञान नही होता है, (१३) तत् के बिना अतत् का यथार्थ ज्ञान नही होता है, (१४) अस्ति के विना नास्ति का यथार्थ ज्ञान नही होता है, (१५) एक के बिना अनेक का यथार्थ ज्ञान नही होता है । (१६) स्वद्रव्य-क्ष ेत्र काल-भाव के विना परद्रव्य-क्षेत्र काल-भाव का यथार्थ ज्ञान नही होता है ।
प्रश्न २३१ - क्षायिक सम्यग्दर्शन हुआ तीनो प्रकार के उपादानउपादेय बताओ ?
उत्तर - ( १ ) जीव का श्रद्धा गुण त्रिकाली उपादान कारण, क्षायिक सम्यक्त्व हुआ उपादेय, (२) क्षायोपशमिक सम्यक्त्व अनन्तरपूक्षणवती पर्याय क्षणिक उपादान कारण, क्षायिक सम्यक्त्व उपादेय, (३) क्षायिक सम्यक्त्व उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण, क्षायिक सम्यक्त्व उपादेय ।
प्रश्न २३२ - केवलदर्शन हुआ, तीनों प्रकार के उपादान - उपादेय बताओ ?