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प्रश्न १८५ - क्या आत्मा कारण और ज्ञान कार्य, कारणानुविधायोनि कार्याणि को माना ?
उत्तर- नही माना, क्योकि आत्मा मे तो अनन्त गुण हैं इसलिए ज्ञान मे से अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादानकारण का अभाव करके उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादानकारण से ज्ञान हुआ आत्मा से नही - तव कारणानुविधायीनि कार्याणि को माना । प्रश्न १८६ - क्या ज्ञान गुण कारण और ज्ञान कार्य, कारणानुविधायीनि कार्याणि को माना
?
उत्तर- नही माना, क्योकि ज्ञान गुण तो त्रिकाल है - ज्ञानरूप कार्य एक समय का है । इसलिए अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान कारण का अभाव करके उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादानकारण से ज्ञान हुआ त्रिकाल ज्ञान गुण के कारण नही - तव कारणानुविधायीनि कार्याणि को माना ।
प्रश्न १८७ - क्या अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान कारण और ज्ञान कार्य, कारणानुविधायोनि कार्याणि को माना ?
उत्तर- नही माना, क्योकि कभी अभाव मे से भाव की उत्पत्ति नही होती है । इसलिए उस समय पर्याय की योग्यता ज्ञान क्षणिक उपादान कारण और ज्ञान कार्य, तब कारणानुविधायीनि कार्याणि को
माना ।
प्रश्न १८८ - ज्ञान उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण से हुआ, ऐसा मानने से किस-किस से दृष्टि हट गई ?
उत्तर - (१) अत्यन्त भिन्न देव, गुरु, शास्त्र से, (२) आँख नाक आदि इन्द्रियो से, (३) ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशमादि से, (४) शुभ भावो से (५) श्रद्धा चारित्र - आनन्द आदि अनन्त गुणो से, (६) अभेद द्रव्य से, (७) ज्ञान गुण से, (८) अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान कारण से, आदि सबसे दृष्टि हट गई ।
प्रश्न १८६ - अब वर्तमान ज्ञान के लिए कहाँ देखना रहा
?