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( १०६ ) ही कार्य होता है। [समयसार गा०६८ की टीका मे] (४) "तेहि पुणो पज्जाया" द्रव्य और गुणो से पर्याये होती हैं। [प्रवचनसार गा०६३] (५) गुणो के विशेष कार्य (परिणमन) को पर्याय कहते हैं।
प्रश्न १७६-कार्य के पर्यायवाची शब्द क्या-क्या हैं ?
उत्तर-कार्य को कर्म, अवस्था, पर्याय, हालत, दशा, परिणाम, परिणति, व्याप्य, उपादेय, नैमित्तिक आदि कहा जाता है।
प्रश्न १७७-कारण का अनुसरण करके ही कार्य होता है। इसमें अनेकान्त किस प्रकार घटित होता है ?
उत्तर–कारण का अनुसरण करके ही कार्य होता है पर से नही यह अनेकान्त है।
प्रश्न १७८-कारण का अनुसरण करके ही कार्य होता है पर से नहीं, इसमे कौन से कारण की बात है ?
उत्तर-वास्तव मे "उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादानकारण" की बात है।
प्रश्न १७६-"कारण का अनुसरण करके ही कार्य होता है पर से नहीं", "पर मे" कौन-कौन से कारण आते हैं ?
उत्तर-(१) निमित्तकारण, (२) त्रिकाली उपादानकारण, (३) अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादानकारण । यह सब पर मे आते हैं।
(गुरु से ज्ञान हुआ-इस वाक्य पर-(१) ज्ञान (२) पढाना, (३) राग, (४) गुरु के ज्ञान पर १८-१८ प्रश्न उपादान-उपादेय के लगाकर वहाँ से शुरू करो)
प्रश्न १८०-क्या गुरु कारण और ज्ञान कार्य, कारणानुविधायीनि कार्याणि को माना?
उत्तर-बिल्कुल नही माना, क्योकि आत्मा के ज्ञान गुण मे से अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान कारण का अभाव करके