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उत्तर - बिल्कुल ठीक नही है क्योकि यहाँ पर आत्मा का ज्ञान त्रिकाली उपादानकारण और ज्ञान उपादेय है ।
गुण
प्रश्न १४० -- यदि कोई चतुर घडा, चाक, कीलो, डंडा, हाथ, राग उपादानकारण और ज्ञान उपादेय। ऐसा ही माने तो क्या दोष आता है ?
उत्तर- घडा, चाक, कीली, डडा, हाथ, राग नष्ट होकर आत्मा का ज्ञानगुण वन जावे तो ऐसा माना जा सकता है कि घडा, चाक, कीली, डडा, हाथ, राग उपादानकारण और ज्ञान उपादेय । लेकिन ऐसा नही हो सकता । क्योकि उपादान - उपादेय तत्स्वरूप मे ही ( अभिन्न सत्ता वाले पदार्थ मे ही ) होता है । जिनकी सत्ता सत्त्व भिन्न-भिन्न हैं ऐसे दो पदार्थों मे उपादान - उपादेय नही होता है । प्रश्न १४१ - घड़ा, चाक, कीली, डडा, हाय, राग आदि निमित्त कारणो को ही ज्ञान का सच्चा कारण मानते हैं उन्हे जिनवाणी में किन-किन नामो से सम्बोधन किया है ?
उत्तर - ( १ ) जो निमित्तकारणो से ही कार्य की उत्पत्ति मानते हैं उन्हें समयसार कलश ५५ मे कहा है कि "उनका सुलटना दुर्निवार है और यह उनका अज्ञान मोह अन्धकार है ।" (२) जो निमित्त कारणो से ही कार्य की उत्पत्ति मानते हैं उन्हे प्रवचनसार गाथा ५५ मे कहा है कि "वह पद-पद पर घोखा खाता है ।" (३) जो निमित्त कारणो से ही कार्य की उत्पत्ति मानते हैं उन्हे पुरुषार्थ सिद्धयुपाय गाथा ६ मे कहा है कि " तस्य देशना नास्ति अर्थात वह भगवान की वाणी सुनने लायक नही है । " ( ४ ) जो निमित्तकारणो से ही कार्य की उत्पत्ति मानते हैं उन्हे आत्मावलोकन मे कहा है कि "यह उनका हरामजादीपना है ।"
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प्रश्न १४२ - आत्मा का ज्ञानगुण त्रिकाली उपादानकारण और ज्ञान उपादेय इसको समझने से क्या लाभ हुआ उत्तर- (१) घडा, चाक, कीली, डडा, हाथ, राग आदि निमित्त