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होती है। प्रस्तुत पुस्तक में विद्वान् लेखक ने जैन साहित्य को शोध एवं समीक्षा के दोहरे रूप में उपस्थित किया है जो उनके वर्षों के गहन अध्ययन का फल है । लेखक दि० जैन कालेज बडौत के हिन्दी विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष हैं तथा जैन भक्ति काव्य की पृष्ठभूमि एवं हिन्दी भक्ति काव्य एवं कवि' के लेखक के रूप में पर्याप्त ख्याति प्राप्त कर चुके हैं।
प्रस्तुत प्रकाशन श्री महावीर क्षेत्र की ओर से १५ वां प्रकाशन है । इस पुस्तक के प्रकाशन के पूर्व १४ महत्वपूर्ण एवं शोधपरक कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें 'ग्रंथ सूचियों के चार भाग, प्रशस्ति संग्रह, जिरणदत्त चरित, प्रद्युम्न चरित, हिन्दी पद संग्रह, चम्पाशतक, राजस्थान के जैन संत व्यक्तित्व एवं कृतित्व तथा जैन ग्रंथ भंडारस् इन राजस्थान' के नाम विशेषत. उल्लेखनीय हैं । इस वर्ष भारतीय ज्ञानपीठ की ओर से डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल को 'राजस्थान के जैन संत व्यक्तितत्व एवं कृतित्व' पर गोपालदास बरंया पुरस्कार से सम्मानित किया गया है । यह पुरस्कार डा० कासलीवाल की खोज कार्यों में गहनता एवं विशेष रुचि के साथ हमारे प्रकाशनों के उच्चस्तरीय स्तर का भी परिचायक है । अप्रकाशित एवं महत्वपूर्ण हिन्दी रचनाओं को प्रकाशित करने की एक योजना क्षेत्र कमेटी के विचाराधीन है जिसके माध्यम से अनेक हिन्दी रचनाओं को प्रकाशित करके शोध छात्रों को इस दिशा में कार्य करने का सुअव सर प्रदान करना है ।
श्रीमहावीरजी क्षेत्र की प्रबन्धकारिणी कमेटी के अन्तर्गत गठित धर्म प्रचार समिति साहित्य प्रकाशन के कार्य को गतिशील बनाने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील है । उक्त धर्म प्रचार समिति का यह दुर्भाग्य रहा कि इसके संयोजक श्री केशरलाल जी अजमेरा तथा सदस्य प्रसिद्ध दार्शनिक विद्वान् श्री पं० चैनसुखदासजी न्यायतीर्थ का आकस्मिक स्वर्गवास हो जाने से हमारी योजनाओं को मूर्तरूप नहीं दिया जा सका । उक्त प्रकाशन में स्व० श्री अजमेरा जी का बहुत योगदान रहा है जिसके लिए हम उनके प्रभारी हैं। पं० चैनसुखदासजी की क्षेत्र कमेटी पर सदैव ही महती कृपा रही है और हमें उनका मार्ग दर्शन मिलता रहा है । वे प्राज नहीं हैं किन्तु उनकी पावन स्मृति हमें प्रकाश व प्रेरणादायक होगी ।
इस पुस्तक के प्रकाशन की प्रेरणा हमें पूज्य १०८ मुनि श्री विद्यानन्दजी महाराज के प्राशीर्वाद से मिली जिसके लिए उनके चरणों में हमारी
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