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________________ a mirat SALMESMARARERNAINITIVEHIKARA VIRALSARA I ANRAHERE HARI पर केन्द्रित करना पड़ता है। 'चरित्तपाहुड' की छब्बीसवीं गाथा का हिन्दी अनुवाद करते हुए पं० जयचन्द छाबड़ा ने लिखा है, "सामायिक अर्थात् राग-द्वेष को त्याग कर, गृहारम्भ-सम्बन्धी सर्व प्रकार की पाप-क्रिया से निवृत्त होकर, एकान्त स्थान में बैठकर अपने आत्मिक स्वरूप का चिन्तन करना व 'पंच परमेष्ठी' का भक्ति-पाठ पढना. उनकी वन्दना करना. यह प्रथम शिक्षा-व्रत है।"" इस प्रकार आचार्य वसुनन्दि ने जिन धर्म और जिन-वन्दना२ को सामायिक कहा है और प्राचार्य शृतसागर ने समता के चिन्तवन को सामायिक कहा है। प्राचार्य अमितगति सूरि के 'सामायिक-पाठ' में निबद्ध श्लोक भक्ति के ही निदर्शक हैं। एक स्थान पर उन्होंने लिखा है, "जैसे अन्धकार-समूह सूर्य को छू भी नहीं पाते, वैसे ही कर्म कलंक जिसके पास फटक भी नहीं सकते, ऐसे नित्य और निरञ्जन भगवान् की शरण में मैं जाता हूँ।" एक दूसरे स्थान पर उन्होंने भगवान् को हृदय में स्थापित करने की भावना भाते हुए लिखा है, "बड़ेबड़े मुनियों के समूह जिसका स्मरण करते हैं, सब नर नारी और देवताओं के इन्द्र जिसकी स्तुति करते हैं, तथा वेद और पुराण शास्त्र जिसके गीतों को गाते हए नहीं रुकते, ऐसे देवों के देव भगवान् हमारे हृदय में विराजमान हों।'५ १. प्राचार्य कुन्दकुन्द, षट्पाहुड मे चरित्तपाहुड, २६वी गाथा का हिन्दी-अनुवाद, प्रकाशक सूरजभान वकील, देववद । २. प्राचार्य वसुनन्दि, वसुनन्दिश्रावकाचार, गाथा २७४-७५, पृ० १०७ भारतीय ज्ञानपीठ, काशी। ३ देववन्दनायां निःसंक्लेश सर्वप्राणिसमताचिन्तनं सामायिकमित्यर्थः । -~-प्राचार्य श्रुतसागर, तत्वार्थवृत्ति, ७।२१ का भाष्य, पृ० २४५, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी. ४. न स्पृश्यते कर्मकलङ्कदापः, यो ध्वान्तसधैरिव तिग्मरश्मिः । निरञ्जनम् नित्यमनेकमेकम्, त देवमाप्तं शरणं प्रपद्ये ।। -अमितगतिरि, सामायिक पाठ, ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद जैन-सम्पादित, १८वां श्लोक, पृ० १७ धर्मपुरा, देहली। ५. य. स्मर्यते सर्वमुनीन्द्र वृन्दै, यः स्तूयते सर्वनरामरेन्द्र । यो गोयते वेदपुराणशास्त्रैः, स देवदेवो हृदये ममास्ताम् ।। –देखिये वही, १२वां श्लोक, पृ० १४. Vied
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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