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________________ ENSE SAREE WANUARY एक रचना 'जम्बूस्वामी सत्कवस्तु' का परिचय, डॉ. हरीशंकर शर्मा, हरीश ने महावीर जयन्ती स्मारिका, अप्रेल, १६६३ में दिया है।' उन्होंने इसकी हस्तलिखित प्रति जैसलमेर की एक स्वाध्यायपुस्तिका में मकित बतलायी है। वह स्वाध्यायपुस्तिका सं० १४३७ की लिखी हुई है। इस माधार पर डॉ. हरीश का अनुमान है कि यह १३वीं शताब्दी की होगी। भाषा १३वीं शताब्दी की होने पर भी, किसी जैन कवि के विषय में यह सुनिश्चित रूप नहीं कहा जा सकता कि वह रचना उसी शताब्दी में रची गई थी। सत्कवस्तु 'वस्तु' छन्द का एक विशेष भेद था। उसके २१ पद्यों में इसका निर्माण हुमा है। इसमें जैनों के अन्तिम केवली जम्बूस्वामी का चरित्र निबद्ध है। इसके पूर्व जम्बूस्वामी के जीवन को आधार बनाकर संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रश में अनेकानेक काव्यों की रचना हो चुकी थी। इसे वह परम्परा प्राप्त हुई । भाषागत सौन्दर्य इसका अपना है। इसके अतिरिक्त दर्शन, कथा और काव्यत्त्व का अच्छा समन्वय हुआ है । कवि ने एक नारी के नख-शिख का चित्र खींचा है कुडिल कुतल, कुडिल कुसल समवयरिण, खामोयरि हंसगह कमल नयणि उन्नय पयोहरि, सुपमारण वर स्वधर नागसेणि जंपइ मरणोहरि सरिसगुण संपत नहिं अस्थि न महिला सार । सिद्धहि कारणि कंत तुहं खिज्जिम बारहवार, सुरिणउ सुन्दर सुरिणउ सुन्दर हास विलास ॥१२॥ इसी प्रकार 'मृगापुत्तकम्' नाम की एक कृति का परिचय भी डॉ. हरीश ने दिया है। उन्होंने लिखा है, "१३वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, हिन्दी की इधर एक सुन्दर-सी रचना 'मृगापुत्तकम्' उपलब्ध हुई है। यद्यपि विषय की दृष्टि से इसमें अत्यधिक नवीनता नहीं उपलब्ध होती, परन्तु फिर भी, भाषा और वर्णन-क्रम की दृष्टि से रचना का पर्याप्त महत्व परिलक्षित होता है। प्रस्तुत रचना का लेखक अज्ञात है । मूल प्रति प्रभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में सुरक्षित है।" इसकी भाषा १३वीं शताब्दी की है, इसमें कोई सन्देह नहीं, किन्तु १. महावीर जयन्ती स्मारिका, पं० चैनसुखदास न्यायतीर्थ-सम्पादित, राजस्थान जैन सभा, जयपुर, भप्रेल १९६३, पृ० २३-२५ । $$$ $$$ $95
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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