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श्री मोहनलाल ८५० वर्ष पूर्व, हो सकता है कि
से ही हुआ था । विद्यानुवाद मंत्र-विद्या का अपूर्व ग्रन्थ था ।' भगवानदास झवेरी ने जैन मन्त्र शास्त्र का प्रारम्भ ईसा अर्थात् तीर्थंकर पार्श्वनाथ के समय से स्वीकार किया है।" पार्श्वनाथ के समय में भी '१४ पूर्व' पहले से आई हुई 'विद्या' के रूप में प्रतिष्ठित रहे हों । उपलब्ध पुरातात्विक सामग्री के आधार पर 'मोकार मंत्र' का प्राचीनतम उल्लेख 'हाथी - गुम्फ' के शिलालेख में प्राप्त होता है, जिसके निर्माता सम्राट् खारबेल ईसा से १७० वर्ष पूर्व हुए हैं।
'शान्ति' का आधार केवल 'णमोकार मंत्र' ही नहीं है, अन्य अनेक मंत्र भी हैं । यहाँ सबका उल्लेख सम्भव नहीं है । वे एक पृथक् निबन्ध का विषय हैं । मंत्र क्षेत्र में यंत्रों की भी गणना होती है । उनमें एक शान्ति यंत्र भी है । मन्दिरों में इसकी स्थापना की जाती है और उसकी पूजा-अर्चा होती है । 'मंत्राधिराज कल्प' नाम के ग्रन्थ में 'शान्ति यंत्र' को पूजा दी हुई है । इसके रचयिता एक सागरचन्द्र सूरि नाम के साधु थे । उनका समय १५ वीं शताब्दी माना जाता है । उन्होंने एक स्थान पर 'शान्ति यंत्र' की महत्ता के सम्बन्ध में लिखा है, " शमयतिदुरित रिंग दमयत्यरिसन्तति सततमसौ । पुष्णाति भाग्यनिचयं मुष्णाति व्याधि सम्बाधाम् ||४ तात्पर्य है -- शांति यंत्र की पूजा से रोग, पाप, शत्रु और व्याधियां उपशम हो जाती हैं, और सौभाग्य का उदय होता है। शांति के लिए
१. कहा जाता है कि मुनि सुकुमारसेन ( ७वी शती ईसवी) के विद्यानुशासन में विद्यानुवाद की बिखरी सामग्री का सकलन हुआ था । विद्यानुशासन की हस्तलिखित प्रति जयपुर और अजमेर के शास्त्र भाण्डरो मे मौजूद है ।
२. “Mr. Jhaveri thinks that the Mantrasastra among the Jains is also of hoary antiquity. He claims that-its antiquity goes back to the days of Parsvanatha, the 23rd Tirthankara, who flourished about 850 B. C."
Dr A. S. Altekar, 'Mantrashastra and Jainism,' Jain cultural Research Society, Hindu University, Varanasi, P. 9.
३. V. A. Smith, Early History of India, Oxford, 1908, P. 38. N. I.
४. श्री सागर चन्द्र सूरि, मन्त्राधिराजकल्प, जनस्तोत्रसन्दोह, माग २, मुनि चतुरविजय सम्पादित, अहमदाबाद, सन् १९३६, ३३वां श्लोक, पृ० २७७ ।
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