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तेजपालराम, दशार्णभद्ररास, जम्मू स्वामी विवाहला और स्थूलभद्रबारहमासा का निर्माण किया था।
भट्टारक और उनके सम्प्रदाय भी शिक्षा के जीवन्त केन्द्र थे । वे अपने शिष्यों को सूरियों की भांति ही व्युत्पन्न बनाते थे। वे जैन दर्शन साहित्य मौर सिद्धांत के साथ-साथ अपने शिष्यों को मन्त्र, ज्योतिष और वैद्यक विद्या भी प्रदान करते थे। भट्टारक 'सकलकीर्ति संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित थे। उन्होंने संस्कृत में १७ ग्रन्थ लिखे हैं । वे हिन्दी के सामर्थ्यवान् कवि थे। उन्होंने आराधना प्रतिबोषसार, णमोकारफलगीत,नेमीश्वरगीत,ौर मुक्तावलीगीत प्रादि भनेक मुक्तक कृतियों का निर्माण किया है । वे मन्त्र विद्या में पारंगत थे । सकलकीति के छोटे भाई ब्रह्मजिनदास ( वि० सं० १५२०) भी बहुत बड़े विद्वान थे। उन्होंने हिन्दी में अनेक प्रबन्ध काव्यों का भी निर्माण किया है। उन्हें समूची शिक्षा-दीक्षा भट्टारक सकलकीत्ति से ही मिली । ब्रह्मजिनदास ने अपनी प्रत्येक रचना में अपने बड़े भाई को 'गुरु' भी कहा है । यह सच है कि भट्टारकों की शिष्य परम्परा अक्षुण्ण गति से चलती रही । उनका 'सरस्वती गच्छ' सरस्वती प्रदान करने में सदैव प्रसिद्ध रहा । उनके विद्यार्थी प्राध्यात्मिक चिन्तन और कवित्व शक्ति के केन्द्रीभूत प्रमाणित होते रहे हैं।
उस समय शिक्षा, दीक्षा और विद्या देने वाले गुरु पृथक-पृथक होते थे। दीक्षा वही दे सकता था जिसने विद्या और चरित्र को समान रूप से अपने जीवन में उतार लिया हो । उसे प्राचार्य कहते थे । सूरि और भट्टारक दोनों ही दीक्षा देने का कार्य करते थे । विद्या-गुरु को 'उपाध्याय' कहा जाता था । लघुराज को दीक्षा देने वाले थे श्री लक्ष्मीसागर सूरि (वि० सं० १५२६) और विद्या-गुरु थे श्री समयरत्न । दीक्षा के समय दीक्षागुरु नवदीक्षित को नया नाम देता था। लघुराज दीक्षा के बाद लावण्य समय कहलाये । दीक्षा के समय शिष्य की पात्रता की जांच की जाती थी। इस जांच के साधनों में ज्योतिष का प्रमुख स्थान था। मुनि समयरत्न ने लघुराज के जन्माक्षरों पर विचार करके ही कहा था कि तुम्हारा पुत्र तप का स्वामी होगा अथवा वह कोई तीर्थ करेगा। .
सूरियों और भट्टारकों में कवित्व शक्ति का होना भी गौरव का विषय माना जाता था। उनके संघों का वातावरण ऐसा होता था कि दीक्षित बालक यथा समय स्वतः कविता कर उठता था। थोड़ा-बहुत प्रयत्न भी अवश्य ही किया जाता होगा । लावण्यसमय ने एक स्थान पर लिखा है, "सोलहवें वर्ष में मुझ पर
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