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की लय के साथ, प्रयोग किया है। जैन कवि मानों पदों के राजा थे। उनके पदों में यदि एक शोर भावुकता है, भक्ति है, कवित्व है, तो दूसरी ओर संगीतात्मकता भी है ।
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लंकारों के क्षेत्र में जैन कवियों को 'चित्र- बंध' से विशेष प्रेम था । उन्होंने इतने कठिन अलंकारों का प्रयोग श्रासान और स्वाभाविक ढंग से ही किया है । उन्हें यह परम्परा संस्कृत काव्यों से मिली थी। इसके अतिरिक्त वे यमक, रूपक, उत्प्रेक्षा और विरोधाभास के प्रयोग में तो असाधारण रूप से सफल हुए हैं। उनके अलंकारों में स्वाभाविकता, कुशलता और कवि प्रतिभा तीनों का ही समन्वय है ।
जैन कवियों की मुक्तक और प्रबंध- दोनों प्रकार की रचनाओं में प्राकृतिक दृश्यों का सरस चित्रण देखने को मिलता है। जैन कवि, जो मुनि या साधु थे, प्रकृति के सन्निधान में ही रहते थे, अतः उन्हें प्रकृति-गत सूक्ष्म जानकारी भी थो और प्रकृति से प्रेम भी था । उनके प्रकृति-वर्णन में जो सौंदर्य प्र सका है, इस युग की अन्य रचनाओं में नहीं देखा जाता ।
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