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रामपुरा
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उपर्युक्त दो लेखो मे से पहला एक स्तम्भ पर तथा दूसरा एक सीढीदार कुँए की दीवाल में लगी हुईं शिला पर है। दोनो में बघेरवाल जाति के श्रेष्ठगोत्र के संगई नाथू के पुत्र जोगा के पुत्र जीवा के पुत्र पदार्थ द्वारा इस कुँए के निर्माण का वर्णन है । इस के शिल्पकार का नाम रामा या रामदास बताया है । दूसरे लेख में नाथू के पुत्र जोगा का नामान्तर योग बताया है तथा अचल ने उसे अधिकारिपद दिया ऐसा कहा है। मेवाड़ की सीमा पर योग की गुजरात के शकप ( मुसलमान राजा ) से मुठभेड़ हुई थी। योग ने दशलक्षण धर्म की साधना की तथा एक जिनमन्दिर बनवाया । उस के पुत्र जीवा के दान की ओर गुणो की बड़ी प्रशंसा की है । जीवा के पुत्र पदार्थ और नाथू हुए इस के बाद राजा दुर्गभानु और उस के पुत्र चन्द्र की विस्तृत प्रशसा है। दुर्ग ने अपने नगर में एक सरोवर बनवाया था । उज्जयिनी के पूर्व मे पिंगलिका नदी पर बांध बनवाया था तथा पिशाचमोक्ष तीर्थ पर तुलादान किया था । दिल्ली के बादशाह अकबर की ओर से गुजरात के सुलतान से लड कर अहिल्लक किला जीता था तथा एक हजार गायें दान दी थी । मथुरा की यात्रा कर बहुत से दान दिये थे । इस दुर्गराज ने पदार्थ को अपना मन्त्री नियुक्त किया था । दुर्ग के पुत्र चन्द्र ने पदार्थ को मुख्य मन्त्री बनाया । तदनन्तर पदार्थ द्वारा की गयी यात्रा, दान, होम, पूजा आदि गतिविधियो की चर्चा है तथा इस कुंए का निर्माण पूरा होने का वर्णन है । यह कुँआ अभी भी पाथू शाह की बावड़ी कहलाता है ( पाथू का ही संस्कृत मे पदार्थ यह रूप प्रयुक्त किया गया है ) |
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ए० ई० ३६, पृ० १२१-३०
रामपुरा के चन्द्रावत राजा अचलदास थे। इन के पुत्र प्रतापसिंह तथा प्रतापसिंह के पुत्र दुर्गभानु हुए।