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ཟ་་ बन्द-तीर्थ की बसदि को, जिसे पहले राम ने बनवाया था और जिसको गंगोंने दान में दिया था, फिर से बनवाया ।
ले० नं० ३७७ में उल्लेख है कि कदम्बवंशी सोविदेव ने किसी चंगाल्व राजाको हरा दिया था और ४५२ में लिखा है कि होय्सल सेनापति ने चंगाल्व नृप को मार भगाया था । पर इन राजाओं का क्या नाम है, हमें मालुम नहीं । ले० नं० ६६१ में सूचना है कि सन् १५१० के लगभग इस वंश के एक नरेश के मंत्री पुत्र ने गोम्मटेश्वर की ऊपरी मंजिल का जीर्णोद्धार कराया था ।
६. निडुगल वंशः - १३ वीं शताब्दी ईस्वी में इस वंश का राज्य उत्तर मैसूर प्रान्त के कुछ हिस्से पर था । ये अपने को चोल महाराज तथा श्ररेयूर पुरवराधीश्वर कहते थे । इस वंश के दो लेख (४७८ और ५२१ ) हमारे संग्रह में हैं जिनसे मालुम होता है कि इस वंश के कुछ नरेश जिनधर्म भक्त थे । ले० नं० ४७८ में इस वंश की एक वंशावली दी गई है जो कि तीसरे वंशधर से प्रारंभ होती है, यथा--चोल राजाओं में हुआ मंगि, उससे बन्त्रि, उससे गोविन्द, उसका पुत्र हुत्रा इरुङ्गोल ( प्रथम ) । इरुङ्गोल का पुत्र हुआ भोगनृप जिससे ब (ब्रह्म) नृप हुआ | उस बम्र्म्म नृप की रानी वाचालदेवी से हरु गोल द्वितीय हुआ । इस नरेश ने अपने श्राश्रित एक जैन व्यक्ति गंगेयन मारेय के अनुरोष पर पार्श्व जिनवसदि के लिए कुछ भूमियों का दान दिया । उक्त बसदि का निर्माण उक्त जैन ने कराया था । उस बसदि की पूजा आदि के लिए कुछ किसानों ने चन्दा एवं तैलादि दान की व्यवस्था की थी। ले० नं० ५२१ में उसकी अनेक उपाधियाँ दो गई हैं तथा उक्त जिन वसदि का नाम ब्रह्म जिनालय दिया गया है जो कि सम्भव है उसके पिता के नाम पर रखा गया था। उक्त बसदि के लिए सन् १२७८ ई० में मल्लि सेट्टि ने सुपारी के २००० पेड़ों के २ हिस्से दान में दिये थे । इरु गोल द्वितीय के सम्बन्ध में इतिहासज्ञों की मान्यता है कि वह जैन धर्मावलम्बी था ।
१ - रावर्ट सेवेज, हिस्टोरिकल इन्स्क्रिप्सन्स ग्राफ सदर्न इण्डिया, पृष्ठ ३६६