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________________ ( तृतीय ) नामका पुत्र था । अन्यत्र उल्लेखों से ज्ञात होता है कि तैल तृतीयश्रीम् का उत्तराधिकारी हुआ ' । ले० नं० ३४६ में इस वंश के अन्तिम अंश का वर्णन है। यह लेख तैल चतुर्थ के वर्णन से प्रारम्भ होता है । तैल चतुर्थ, श्रीवल्लभ शान्तर का पुत्र था । इसकी पत्नी श्रक्खादेवी यो जिससे काम, सिंह और श्रमण ये तीन पुत्र हुए। काम से जगदेव और सिगिदेव दो पुत्र तथा लिया देव पुत्री हुई। काम, तैल चतुर्थ का उत्तराधिकारी हुआ और जगदेव कामदेव का । उक्त लेख में लियादेवी के दान कार्यों का वर्णन है । यह देवी गंगवंश के राजकुमार होन्नेयरस की पत्नी थी । यद्यपि पीछे के शान्तर नरेश वीर शैवधर्म की ओर झुक गये थे तो भी जैन धर्म को कृतज्ञता के भाव उनके मन में बराबर थे । २-३ शताब्दी बाद भी इस वंश के नायकों को अपने पूर्वजों के धर्म की याद बनी रही। कारकल से प्राप्त दो लेखों ( ६२४ और ६२७ ) से हमें ज्ञात होता है कि जिनदत्तराय के वंशज भैरव के पुत्र वीर पाण्ड्य ने कारकल में बाहुबलि की प्रतिमा बनाकर प्रतिष्ठित कराई थी तथा वहीं जिनभक्त ब्रह्म ( क्षेत्रपाल ) की प्रतिमा भी प्रतिष्ठापित की थी । ४. कोल्ववंशः - कोङ्गाल्ववंश राजानों का शासन कोङ्गलनाड ८००० प्रान्तपर था जो कि वर्तमान कुर्गके उत्तरीभाग येलु सावीर प्रान्त और मैसूर के हसन जिले के दक्षिणी भाग कुल्गुद तालुका को शामिल किये था । यहाँ के पूर्व इतिहास का हम पता नहीं पर ११वीं शताब्दी इस्वी से कोब्राल्व नरेशों के शिलालेखों से ज्ञात होता है कि उस समय यह क्षेत्र महत्वपूर्ण था । इस वंश के जो भी लेख प्रस्तुत संग्रह में हैं उनसे उनके राजवंश का विशेष परिचय नहीं मिलता पर उनकी जैन धर्मपरायणता का परिचय अवश्य मिलता है । सन् १०५८ ई० के लेखों (१८८, १८६, १६० ) से मालुम होता है कि राजेन्द्र कोवाल्व ने अपने पिता द्वारा निर्मापित बसदि के लिए भूमिदान दिया था । उसकी मां ने भी एक बसदि बनवाई थी और उसमें अपने गुरु गुरासेन १ - रावर्ट सेवेल, हिस्टोरिकल इन्स्क्रिप्सन्स ग्राफ सदर्न इण्डिया, पृष्ठ ३६०
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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