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१०६ लेख इस संग्रह में हैं जो कि प्रायः साधारण जनता, सरदारों एवं सेनापतियों से सम्बंधित हैं । ले.नं. ५७६ में उसके एक जैन सेनापति वैचप्प का उल्लेख है जो कि उसके पिता के समय से उक्त पद पर था । उक्त लेख में उसकी कोंकण देश से लड़ाई का वर्णन है जिसमें बैचप्प की जीत हुई थी। ले० नं० ५८१ में हरिहर द्वितीय के पुत्र बुक्कराय द्वितीय तथा बैचाप सेनापति के पुत्र इरुगप्प महामंत्री का उल्लेख है । ले० नं० ५८५ में चैच (वैचप) और इरुगप्प की प्रशंसा के साथ बुक्क और हरिहर की प्रशंसा है। सन् १३८६ में इरुगप्प ने विजयनगर में एक मन्दिर बनवाया और उसमें कुन्यु जिननाथ की स्थापना की थी। ले० नं. ५८६ में और उसके बाद के लेखों में महामण्डलेश्वर के स्थान में उक्त राजा की अश्वपति, गजपति आदि तथा महाराजाधिराज उपाधियां मिलती हैं। ले.नं. ६०२ में हरिहरराय की मृत्यु का उल्लेख है। उक्त लेखानुसार वह सन् १४०४ (शक सं० १३२६ भाद्रपद कृष्ण १० सोमवार ) में दिवंगत हुआ था।
हरिहर द्वितीय का उत्तराधिकारी उसका बेटा बुक्क द्वितीय हुअा जिसने १४०४ से १४०६ ई० के बीच राज्य किया था पर उसके राज्य का एक भी जैन लेख प्रस्तुत संग्रह में नहीं है । उसका उत्तराधिकारी देवराय हुआ जो कि उसका भ्राता था । इसने १४०६ से १४२२ ई० तक राज्य किया। इसके राज्य के ६ लेख प्रस्तुत संग्रह में हैं। ले० नं. ६०४ में उसकी अधिराट जैसी उपाधियां दी गई है तथा ६०५ में इसकी प्रशंसा की गई है। ले० नं० ६०६ में उसकी अनेक उपाधियों के साथ उसके जैन सेनापति गोप का उल्लेख है । लेख नं. ६१५ के अन्तर्गत दो लेखों से विदित होता है कि उसका एक बेटा हरिहरराय था जो कि जैन धर्मानुयायी था। उसने कनकगिरि के विजयनाथ देव की उपासना आदि के लिए, मलेयूर ग्राम दान में दिया था।
ले० नं० ६१६ एवं ६२० में इस वंश की वंशावली दी गई है जिससे
१. वही-ले. नं० १२६