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८. विजय नगर राज्य:-होय्यसल साम्राज्य १३ वीं शताब्दी तक दक्षिण भारत में विद्यमान रहा पर मुसलमानों के दो तीन हमलों से वह ध्वस्त हो गया। उसका अन्तिम राजा बल्लाल तृतीय, मदुरा के सुल्तान गियासुद्दीन द्वारा मार डाला गया । दक्षिण के अन्य हिन्दू साम्राज्य भी खतरे में थे। वे सत्र सचेत हो विजय नगर के नायकों के झण्डे के नीचे पाये।
विजय नगर साम्राज्य के संस्थापक अपने को यादव वंश का मानते हैं (५८५ श्लो० १५) । इस वंश का संस्थापक था संगमेश्वर या संगम (५६१ ) जिसके संबंध में हमें विशेष कुछ मालुम नहीं। इसके दो बेटों ने मिलकर हिन्दू शक्ति को नेतृत्व प्रदान किया। हरिहर प्रथम जिसके सम्बन्ध में कहा जाता है कि वह सन् १३३६ में गद्दी पर बैठा था सन् १३५५ तक जीवित रहा । प्रस्तुत संग्रह में उसके समय के दो ले० नं. ५५८, ५५६ हैं जिनमें उसे महामण्डलेश्वर, हिन्दुवराय, सुरताल श्री वीर कहा गया है । उसका उत्तराधिकारी उसका भाई बुक्कराय हुआ जिसने सन् १३५५ से १३७७ ई० तक राज्य किया। इसके राज्य के ६-७ ले० प्रस्तुत संग्रह में दिए गये हैं, जिनमें उसे महामण्डलेश्वर कहा गया है। ले० नं ५६६ में उसे पूर्व दक्षिण पश्चिम समुद्राधीश्वर तथा ले० नं० ५६२ में अभिनव बुक्कराय कहा गया है । ले० नं० ५६१ में उसके एक पुत्र विरुपएण वोडेयर का उल्लेख हैं । ले० नं० ५६१, ५६५' एवं ५६६ में उक्त नरेश की धार्मिक नीति का निरूपण है । तदनुसार वह अपने राज्य में जैन और वैष्णवों में कोई भेद नहीं देखता था ओर जब कभी विवाद के प्रश्न उठते थे तो दोनों के पारस्परिक मेल मिलाप कराने में उद्यत रहता था। उसके राज्य के शेष लेख प्रायः समाधिमरण के स्मारक हैं।
बुक्कराय का उत्तराधिकारी उसका पुत्र वोर हरिहरराय द्वितीय हुश्रा जिसने सन् १३७७ से १४०४ ई. तक शासन किया । इसके राज्यकाल के करीब १३
१. जैन शि० सं०, प्रथम भाग, ले० नं० १३६.