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तुग, राचमल्ल तृतीय का भाई एवं उत्तराधिकारी था, तथा राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण तृतीय अकालवर्ष ( ६३८-६६६ ई० ) का बहनोई और सामन्त राजा था। __तुग द्वितीय का पुत्र मारसिंह तृतीय इस वंश का बड़ा प्रतापी राजा हुआ है। लेख नं० १४६ और १५२' में इसकी जो अनेक उपाधियाँ दी गई हैं और उसके लिए जो प्रशंसात्मक वाक्य प्रयुक्त हुए हैं उनसे इसके प्रतापी होने में कोई संदेह नहीं रह जाता । लेख नं. १४६ के अनुसार उसने पुलिगेरे नामक स्थान में एक जिन मन्दिर बनवाया जो कि इसके नाम पर 'गंगकंदर्प जिनेन्द्र मन्दिर' कहलाता था। लेख न० १५२ के उल्लेखानुसार इसने अनेक पुण्य कार्य किए थे,
और जैन धर्म के उत्थान में बड़ा योग दिया था। इसी लेख में उसकी अनेक सामारिक विजयों का उल्लेख है। उक्त लेख के अनुसार इस राजा ने अन्त में राज्य का परित्याग कर अजितसेन भट्टारक के समीप तीन दिवस तक सल्लेखना व्रत का पालन कर बंकापुर में देहोत्सर्ग किया था। यह राजा राष्ट्रकूट नरेशों का महासामन्त था और इसने कृष्ण तृतीय के लिए अनेक देश जोत कर दिये थे तथा इन्द्र चतुर्थ का राज्याभिषेक कराया था। इसका और इसके बेटे राचमल चतुर्थ का मंत्री अोर सेनापति प्रसिद्ध चामुण्डराय था । ___राचमल्ल चतुर्थ के समय का केवल एक लेख (१५४) प्रस्तुत संग्रह में है। उसने श्रवणवेल्गोल निवासी श्रीमत् अनन्तवीर्य के लिए पेर्गदूर नामक ग्राम तथा कुछ और दान दिये थे। इसके राज्यकाल में सेनापति चामुण्डराय ने श्रवणबेलगोल स्थान में बाहुबलि की एक विशालमूर्ति का निर्माण कराया था ।
गंग वंश के राजारों में अन्तिम उल्लेखनीय नाम है रक्कसगंग पेम्मा॑नडि सचमल्ल पंचम का जो कि सन् १८४ में सिंहासनारूढ हुआ था। उसका असली नाम अरुमुलि देव था । वह बूतुग द्वितीय की दूसरी पत्नी रेवकन्निम्मदि से उत्पन पुत्र वासव का पुत्र था। इसने अपनी कन्याओं के विवाह द्वारा पल्लयो
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१. जैन शिलालेख संग्रह, प्रथम भाग, लेख नं० ३८.