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________________ बिदरूरुके लेख मन्दिरकी नींव रखने और प्रतिष्ठाका दिन दिया है। वह दिन शालि - ( या शालिवाहन) शक वर्य १५०८, व्यय- संवत्सर, चैत्र शुक्ला षष्ठी, बुधवार था, उस समय नक्षत्र मृगशीर्ष या मृगशिरा तथा लग्न वृष या वृषभ था | श्लोक ६ के बाद के तथा ७ के बादके कन्नड़ गद्य में भैरव द्वि० की बिरुदावलि दी हुई है तथा मन्दिरका नाम त्रिभुवनतिलक - जिन चैत्यालय (७ वें श्लोक के बाद के गद्यमें ) दिया है, जिसको 'सर्व्वतोभद्र' और 'चतुर्मुख' कहा गया है । यह कार कल्लमें पाण्ड्यनगरी में श्रीगुम्मटेश्वरके सन्निधानवर्ती चिक्कबेट्ट टीलेपर बनाया गया था । पाण्ड्यनगरी, वर्तमान हिरियतडिकी तरह, एक दूसरी कारकलको पार्श्ववर्ती उपनगरी थी जिसमें स्वयं चिक्कबेट्ट टीला, जिसपर चतुर्मुख बस्ती बनी हुई है, स्तम्भीय गोम्मटेश्वरकी मूर्ति और इन दोनोंके बीच में से जाने वाली वह सकड़ी गली है जिसमें कुछ जैन गृहस्थोंके गृह तथा मठ अवस्थित हैं। ख्यातनामा गुम्मटेश्वरकी मूर्तिकी प्रतिष्ठा करानेवाले पाण्ड्यराय या वीरपाण्ड्य के नामसे यह नगरी प्रसिद्ध थी। आगे बताया गया है कि भैरव द्वि० ने मन्दिरके चारों ओर मुख्य दरवाजोंकी तरफ अर, मल्लि और मुनिसुव्रत इन तीन तीर्थङ्ककी मूर्तियोंको विराजमान करवाया, तथा इन्हींके साथ बीचमें २४ चौबीसों तीर्थङ्करों की मूर्तियोंकी यक्ष-यक्षिणी के साथ स्थापना की । आगे पंक्ति २२ से ४२ में तेळार ग्रामके दानका उल्लेख है, जिससे लगान के रूपमें ७०० 'मूडे' धान्य ( चावल ) की प्राप्ति थी । इसके अतिरिक्तरंजाळ और तल्लूर ग्रामों के 'सिद्धाय' ( अर्थात् चालू लगान ) में से २३८ 'गद्याण' ( या 'वह', पं० २८ ) भी मिलते थे । इस आमदनीसे मन्दिरकी पूजाका प्रबन्ध होता । नि पूजन करनेवाले १४ स्थानिकों ( पुजारियों ) के कुटुम्ब इसी काम के लिये नियत थे । प्रत्येक दरवाजेकी वेदी पर कितना खर्च होता था, यह सिलसिलेवार इस शिलालेख में दिया हुआ है। उससे पता चलता है कि सबसे अधिक खर्च पश्चिम दरवाजेकी वेदी पर होता था, क्योंकि वही मुख्य गिनी जाती थी। दूसरा इस दरवाजेकी प्रधानताका प्रमाण यह है कि उसी दरवाजेकी वेदी पर २४ तीर्थङ्कर विराजमान हैं। इस प्रधानताकी वजह ही ५५१
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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