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६१ इन लेखों में मक्षसंव कुन्दकुन्दान्वय के नाथ स्वरूप सिंहनन्दि प्राचार्य का उल्लेख है जिन्हें. गंग महीमण्डलिककुलसंवरण या समुदरण कहा गया है। लेख नं २७७ में बहबलि, बेट्टव-दामनन्दि भट्टारक, बालचन्द्र भट्टारक, मेषचन्द्र अविद्य श्रादि प्राचार्यों के नाम बिना किसी सम्बन्ध बताये दिए गये हैं।
इन लेखों से ज्ञात होता है कि ११-१२ वीं शताब्दी के गंगनरेश मुबबल गंग बर्मदेव उसकी रानी गंग महादेवी तथा चार पुत्र मारसिंग, नन्निय गंग, रक्कत गंग और भुजबल गंग चौथो और पांचवी पीढ़ी के. प्राचार्यों के मक्तये और उन्हें दानादि से सम्मानित किया था।
क्राणूर गण के तिन्त्रिणीक गच्छ की प्राचार्य परम्परा लेख नं० ३१३,३७७ ३८६, ४०८ और ४३१ से इस प्रकार मालुम होती है।
रामणन्दि
पद्मणन्दि
मुनिचन्द्र
भानु कीर्ति
कुल भूषण (४३१)
नयकीर्ति (४०८)
संकल चन्द्र (..) इनमें मुनिचन्द्र और उनके शिष्य की लेखों में बड़ी प्रशंसा है । वे . कल्याणी के चालुक्यों के अधीन सामन्तों के गुरु थे । भानुकीर्ति यंत्र, तंत्र, मंत्र में प्रवीण थे। वे बन्दखिकापुर के अधिपति थे.( ३७७) तथा मसालाचार्य कहलाते थे और इस पद पर करीब ४० वर्ष तक रहे( ३१३, ४०८)।