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की.स्मृति दिलाते हैं।
लेख नं० २६७, २७७ और २९E से मेवपाषाणगच्छ की इस प्रकार गुरुपरम्परा प्राप्त होती है ( तिथिक्रम के अनुसार लेख नं० २६६ (पुरले ) को सबसे पहले होना चाहिए)। सिंहनन्दि श्रादि अनेकों प्राचार्यों के नाम बिना किसी सम्बन्ध को दिखाये
बालचन्द्र
प्रभाचन्द्र
गुणनन्दि
गुणचन्द्र
मापनन्दि
प्रभाचन्द्र
अनन्तवीर्य
मुनिचन्द्र (२६७)
शुभकीर्ति (२६७)
बुधचन्द्र (२७७)
भुतकीर्ति कनकनन्दि कनकचन्द्र माधवचन्द्र बालचन्द्र बहाचार्य
(२७७, २६९)
१. सापनीयों में श्रीमूलमूलगन पुलागवृक्षमुलगा तथा कनकोपल (कनकपाषाण)
श्रादि मण थे । गण एवं गच्छ पीछे एकार्य में भी प्रयुक्त हुए है।