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जैन-शिलालेख संग्रह
[राजाधिराज राजपरमेश्वर वीर-देवराय-महारायके पुत्र वीर हरिहरराय ने कनकगिरिके देव विजयकी उपासनाके लिये मलेयूर ग्रामकी सारी भूमिका दान किया।
दूसरा लेख श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् । बीयात् त्रैलोक्यनाथस्य वर्द्धता जैन-शासनम् ॥
स्वस्ति श्री जयाभ्युदय-शालिवाहन शक-वर्ष १३४४ सन्द वर्तमानशुभकृतु-संवत्सरद श्रावण-शु १५ आ लु कनकगिरिय श्री-विजय-देवरिगे श्रीमन्महाराजाधिराज रानपरमेश्वर श्री वीरप्रताप देवराय-महारायर कुमार हरिहररायर मोडेयरु आ-कनकगिरिय श्री-विजयनाथ-देवर अमृत-पडि अङ्ग-रङ्ग-भोग-वैभवक्के कोट्ट धर्म-शासन तमगे कोट्रिह तेरकणाम्बय राज्यकके सलुव कोलगणद भागेय मलेयर ग्राम १ र चतुस्सीमेयोळगल्ल गद्दे बेद्दलु तोट तुडिके आरु-वन्नु मेलु-ओन्नु अड-देरे कुम्बार-देरे कल्ल-मने कोड़ेगे देव-दान बिनुगु बेस-वक्कलु होन्नु होम्बळि होङ्गे हारा सुङ्क दण्णायकर स्वाम्य मुन्तागि प्राकु-मर्यादे ऐनुनळ सर्व-खाम्यवनु अनुभविसिकोम्ब मलेयर ग्राम १ र कालुल्लि हुणसूरपुरद ग्राम १ उभयं ग्राम २ कं हिरिय मनेय पट्टे प्रमाण ग २३० ( आगेकी १३ पंक्तियोंमें दानका विस्तृत विवरण है ) अक्षरदलु नृरिपत्त-ऐळु होनिन मलेयूर ग्राम १ न सोम-ग्रहण-पुण्य-काल शुभकृतु-संवत्सरद कात्तिक-शु १
आरभ्यवागि त्रियम्बक देवर सनिधियल्लि स-हिरण्योदक-दान-( दान -धारापूर्वकवागि धारेयनेरेदु आ ग्रामद चतुस्सीमेल्लि मुक्कोडय कल्लनु नेट्टिति को? (b) वागि आ-प्रामद चतुस्सीमेयोळगुल्ल अक्षिणी-आगामिनिधि-निक्षेप-जलपाषाण-सिद्ध-साध्य अष्टभोग-तेनम-स्वाम्य सर्व पृथ्वी समस्तबलिसहित देवर अमृतपडिगाज-रङ्ग-भोग-वैभवक्के धारयन्नु एर कोटेवागि आ-चन्द्रार्क-स्थायियागि चित्तायसुवुदेन्दु कोट्ट धर्मशासन-बिट दत्ति ( पूर्वकी तरह अन्तिम श्लोक ) कोलगणद वासुदेवरिगे मले (IIIa) यूरलि कोटिह वूरु-मुण्डाग केरेय केळगे