________________
३०८
जैन-शिलालेख-संग्रह
गच्छाच्छके ललितकीर्तिमुनेविनेयः आशाम्बर-श्रियमभाच्छुमचन्द्रदेवः ।। वर्ष-श्रीमुख-मास-चैत्र-सित-पक्षाच्चैः-चतुर्यो-दिने वारे चान्द्र [...] महति नक्षत्रेऽश्विनी-संशिके। दैने ज्योतिषि कृत्तिका .." परि ... सौभाग्य-योगे वणिगनामाद्योत्करणे स्व " य शुभचन्द्राख्य-व्रती योगतः ॥ सन्यस्य सर्व-सङ्गानि पठन् पञ्च-पदानि च । समाहितो निववृते शुभचन्द्र-व्रतीश्वरः ॥ भरताधीश्वरनिन्दमन्द-शुभचन्द्राभिल्यनिन्देन्दु भा-। सुर-जैन-बतिनाथनप्प विदितानन्दाभिधाचार्य ...। ... ... शुभचन्द्र-देव-मुनियिन्द ... आदुदत्यूजितम् । सुर-राज्योर्जितवप्प ... ... ... बगत्पावनम् ।। बन्दणिके मठाधिपति-शान्ति-जिनावसथाग्रदो जगम् । ब ... ... मण्टपमनोप्पिरे मासिसि तन कीर्ति-या-1 नन्द ... नाडे भू-भुवन-मण्टपडोळ .. .. ...। सन्द समाधियन्द ... ... ना शुभचन्द्र-संयुतम् ॥ श्री
[श्री-मूलसंघ, क्राणूर -गण तथा तिन्त्रिणीक गच्छके, ललितकीर्ति-मुनिके आशाकारी, शुभचन्द्र-देव थे। ( उक्त मितिको ) वह स्वर्ग गये। “सन्यसन' ( समाधि या सल्लेखना ) में सब कुछ गकर, पांच शब्दों ( परमेष्ठियोके वाचक ) को उच्चारण करते हुए, उनका मरण होगया। भरतेश्वरसे लेकर ... ... ... ... ... बन्दणिकेके मठाधिपतिके लिये ... ... ... शान्ति बसदिके सामने एक मण्डप खड़ा किया गया था।
[ EC, VII, Shikarpur tl., No 226.]