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________________ लण्डनके लेख लेख १. ॐ संवत् १२०८ वैशाख वदि ५ गुरौ ॥ मण्डिल पुरात् ग्रहपत्यन्वे (न्वये ) श्रेष्ठि-म उ-माहुल तस्य सुत श्रेष्ठि- श्री महीपति भ्रातु बाल्हे महीपति-सुत पापे कूके साहू देवू [ आल्हू १ ] २. विवोके सवपते सर्व्वे नित्यं ३. प्रणर्मात ( मंति ) स [ ६ ] ॥ अनुवाद : --- ॐ १ संवत् १२०८, बैशाख वदी ५, गुरुवारको । मण्डिलपुर ( बुन्देलखण्डका एक नगर ) से, ग्रहपति वंशके श्रेष्ठी माहुल; उसके पुत्र श्रेष्ठी महीपति, उसके भाई नाल्ह; और महीपतिके पुत्र पापे, कूके, साहू, देदू, [ आल्हू ? ], विवीके और सवपते ये सब मिलकर नित्य ( रोज़ ) इस प्रतिमाकी बन्दना करते हैं । [JRAS, 1898, p. 101-102 ] T. L. Tr. ३३७ महोबा - संस्कृत । [ [सं० १२११ = ११५४ ई० ] १०१ श्रीमान् मदनवर्म्मदेव राज्ये, सं• १२११, आषाढ़ सुदि ३, सनौ, देवश्री नेमिनाथ – रूपाकार लाखण । इस शिलालेखमें २ पंक्तियाँ हैं, जिसमेंकी नीचेकी केवल एक पंक्ति ही ऊपरके लेखमें आयी है । मूर्तिके चरण तल पर शंखका चिह्न है, जिससे जाना जाता है कि यह श्री नेमिनाथकी मूर्ति है । I [ A. Cunningham, Reports, XXI, P. 73, T. ]
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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