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जैन - शिलालेख संग्रह
पुदिदवनन्दु माडिसिद कट्टिसिद्धं केषेयं निचान्वयक्कू । उद्भवभागलेन्दद्ळ-वंश-शिखामणि [वि] ष्णुवर्द्धनम् ॥ अलि बळिक तम्मवगे परोक्ष - विनयमागे बोचसमुद्रमेम्ब केषेयं कट्टिसि शिव महिमेयेडेगे केशव- । भवनोद्धरणक्के... ऐ -कोडिगेधर्म्म- । प्रवर बेडितनितर- 1त्थमनिवनीव बिट्टि-देवनदटर देवम् ॥ स्वस्ति श्री विष्णु-सामन्तं स्थिरं जीवि
[ इस लेख में बताया गया है कि बिट्टि देव, अपरनाम विष्णुवर्द्धन, शिवगङ्गेशाद्रि (Mount Shivaganga) में शिव मन्दिर बनवाया था । विट्टि देव श्रळ-कुळका था । उसने इसके सिवाय, श्रदळ- जिनालय, श्रदलेश्वर - देवगृह भी बनवाये थे । ]
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[EC. Ix, Nelamangala U., No. 84 ]
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मुगुलूर - कन्नड़ |
[ विना काल-निर्देशका, ११४० ई० ( लु. राइस ). ]
[ बस्तिके अन्दर पड़ी हुई मूर्ति के पीठस्थलपर ]
श्रीपाल वैविद्य-देवर गुड्डगळ मेळसिन मारि-सेट्टियरि नेगतिय गोवनसेट्टियर सोगे- नाड मुगुळियलु बसदियं माडिसिरु... माडिसि श्री पार्श्व - देवर प्रतिष्ठेयं माडिसि आ-असदियुमं आ-देवर भूमियुमं तम्म गुरुगळिगे धारा-पूर्वकं माडि कोहरु ||
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[ श्रीपाल - त्रैविद्य देवके गृहस्थ- शिष्य मारि-सेट्टि और गोवन सेट्टिने सीगे - नाड्में मुगुळिमें एक 'बसदि' बनवायी और उसमें पार्श्व-देवकी स्थापनाकर, बसदि और उसकी जगह ( जमीन ) देवता के लिये अपने गुरूको अर्पित करदी । ] [E, C, V. Hassan U. 129.]