________________
૬૪૨
होता है कि उसने मोक्षतिलक नामक प्रत किया था और पाषाण पर नयणदेव की मूर्ति खुदवायी थी । उसी वर्ष उसने श्रवणबेलगोल में मूर्ति की प्रतिष्ठा करायी एवं वहाँ एक तालाब खुदवाया था । ले० नं० २८५ (प्रथम भाग, ४३ ) में इस महिला की बड़ी प्रशंसा है।
ले० नं० २८ से एक श्रौर जैनधर्म भक्त महिला का नाम ज्ञात होता है । वह है कालियक्कबे, जो कि चालुक्य नरेश त्रिभुवनमल्ल के सामन्त पारड्य भूपाल के सेनापति सूर्य की पत्नी थी । इसने सन् १२२८ में साम्बनूरु में एक सुन्दर जिनालय बनवाया और पूजा के हेतु तथा पुजारी की ब्राजीविकार्थं मन्दिर के पुरोहित को कुछ भूमि दान में दे दी ।
दिया था ।
ले० नं० ३१३ में हमें दानशील तीन महिलाओं के नाम मिलते हैं । गंग नरेश मारसिंह की छोटी बहिन सम्गियन्त्ररसि ने उद्धरे नामक स्थान में अनेक जैन मुनियों को दान दिलाया और पञ्चवसदि जिनालय को सजाया था, तथा वसदि के लिए सवरणविलि नामक ग्राम दान में उसी लेख में safeब्बरसि नामक एक महिला का उल्लेख है । उस महिला ने जहाँ जिन मन्दिर नहीं थे वहाँ जिन मन्दिर बनवाये और जहां जैन यतियों को आमदनी के क्षेत्र नही थे वहां उसने दान दिये। तीसरी महिला शान्तियक्क ने, जो कि बोप्प दण्डेश की भतीजी एवं केतिसेट्टि की पत्नी थी, उद्धरे में एक बसदि बनवायी ।
ले० नं० ३३६ में जैन धर्म परायणा दो बहिनों का नाम आता है । वे हैं Geoबे र पद्मिक्क । जक्कब्बे के विषय में लिखा है कि वह होय्सल नरेश नरसिंह के पुराने सेनापति चाविमय्य की पत्नी थी । उसने हेरगू में एक जिनालय बनवाकर पार्श्वनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठित करायी तथा पूजनादि प्रबन्ध के लिए नरसिंह से भूमि का दान भी ले लिया था । इसी तरह ले ० नं० ३५२ में ईश्वर चमूप -की पत्नी माचियक्क द्वारा जिन मन्दिर निर्माण एवं भूमिदान का उल्लेख है। ले० नं० मालियक्क को अन्तसून गुणरत्नमण्डन एवं चातुर्वण्णसमुदयैकशरण कहा गया है ।