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१३२ स्वामी बनाया था। उसके गुरु का नाम नयकीर्ति सिद्धान्तदेव था । उसने सन् १९९५ में भवणवेल्गोल तीर्थ पर पाश्वदेव के श्रागे नृत्यरंगशाला एवं शिलाकुटिम बनाकर अपने दिवंगत गुरु की स्मृति में एक निषिधि बनवायी थी। जिनधर्म के लिए नागदेव की स्थायी कृति थी श्रवणवेल्गोल में 'श्रीनिलय' नगरजिनालय का निर्माण तथा उसके लिए भूमिदान । उसके प्रतिपालन के लिए उसने खएडलि और मूलभद्र के वंशज श्रवणवेल्गोलवासी वणिजों को नियुक्त किया था।
२१. महादेव दण्डनाथ:-जैन मंत्रियों में उस मंत्री का नाम भी उल्लेखनीय है । वह बल्लाल द्वितीय के महामण्डलेश्वर एक्कलरस का महाप्रधान था। उसके गुरु का नाम सकलचन्द्र भट्टारक था । लेख नं० ४३१ में लिखा है कि उसने सन् १९६८ में उद्धरे नामक स्थान में एक अनुपम जिनालय बनवाया और उसका नाम एरग जिनालय रखा और उक्त जिनालय की पूजा, जीर्णोद्धार के हेतु स्वयं बहुत प्रकार के दान दिये तथा एक्कलरस आदि से भी विविधदान दिलाये।
२२. कम्मट माचय्यः-सन् १२०० के लगभग के कुम्बेयनहल्लि ग्राम से प्राप्त एक ले० नं. ४३७ (प्रथम भाग ४६५ में एक और जैन मंत्री का उल्लेख है। वह है महाप्रधान, सर्वाधिकारी, तन्त्राधिष्ठायक, कम्मट माचय्य । उसने उक्त सन् में अपने श्वसुर के साथ कुम्बेयनहल्लि नामक ग्राम में परिमादिमल्ल जिनालय के लिए दान दिया था। उक्त लेख में यह भी लिखा है कि महाप्रधान, सर्वाधिकारी हरियएण ने कुम्बेयनहल्लि के देव की प्रतिष्ठा की थी।
२३. अमृतः-ले० नं० ४५२ से विदित होता है कि बल्लाल द्वितीय के अमृत नाम का एक और दण्डनायक था जो कि महाप्रधान, सर्वाधिकारी, महापसायस (आभूषणाध्यक्ष ) एवं भेरुदन मोत्तदिष्टायक ( उपाधिधारियों का अध्यक्ष ).
था। लेख में उसे कविकुलज और चतुर्थवर्ण (शुद्र ) का कहा गया है । उसे 'धार्मिक, भमति, पुण्याधिक, मंत्रिचूडामणि, सौम्यरम्याकृति कहा गया है। उसने श्रोक्ल गैरे में सन् १२०३ में एक्कोटि नामक जिनालय बनवाया और सभी.