________________
१२४
जैन - शिलालेख संग्रह
(३) उनके पुत्र श्रीमद् हरिवर्म महाधिराज थे । श्रीमान् विष्णुगोप- महाधिराज थे ।
( ४ )
(५)
29
""
""
(६) उनके पुत्र, जो कदम्ब कुलवंशीय कृष्णवर्म्म- महाधिराजकी प्रिय बहिनके पुत्र थे, अविनीत नामके श्रीमान् कोङ्गणि महाधिराज थे ।
(७) उनके पुत्र दुर्विनीत थे । इन्होंने अन्दरि, आलसूर, पोरुलणे, पेळूनगर और दूसरे स्थानोंके युद्धोंको जीता था । इन्होंने किरातार्जुनीय के १५ सर्वोपर टीका की थी ।
99
39
माधव - महाधिराज थे.
J
(८) इनके पुत्र मुष्कर थे ।
( ९ ) उनके पुत्र श्रीविक्रम थे, ये चौदहों विद्याओंमें पारङ्गत थे ।
(१०) उनके पुत्र भूविक्रम थे । इन्होंने विळन्दकी भयानक लड़ाईमें राजा पल्लवेन्द्रको जीता था, और सौ लड़ाइयोंमें विजय लाभ करनेसे इनको 'राजश्रीवल्लभ' भी कहते थे ।
( ११ ) उनका छोटा भाई नव- काम था ।
(१२) शिवमार कोङ्गणि महाराजका नाती श्रीपुरुष था, उन्हें पृथिवीकोणि महाधिराज भी कहते थे ।
(१३) उनके पुत्र, प्रसिद्ध गंगवंशके स्वच्छ आकाशके सूर्य, कोङ्गणिमहाराजाधिराज परमेश्वर श्री शिवमार देव थे । इनकी बहुत-सी प्रशंसाका वर्णन है ।
(१४) उनके पुत्र, मारसिंह थे ।
जब वे अखण्ड गङ्ग-मण्डलपर राज्य कर रहे थे; उनका एक श्रीविजय नामका सेनापति था । उसकी प्रशंसा । उसने मान्य- नगरमें एक शुभ, विशाल जिनमन्दिर बनवाया । उसे श्रीमारसिंहसे किषु वेक्कूरु गाँव मिला था, वह उसने इसी अर्हत्-मन्दिरको भेंट कर दिया । इस गाँव की सीमायें ।
शाल्मली गाँव में रहनेवाले, कोण्डकुन्दान्वयके तोरणाचार्य थे । उनके शिष्य पद्मनन्दि थे । उनके शिष्य प्रभाचन्द्र थे, जिन्होंने अपना आवास यहीं बना लिया था । जडियके तालाबोंकी नीवेकी जो जमीनें उनको दी गई थीं उनकी बिगत । यह शासन ( लेख ) शक वर्ष ७१९ के १ महीने बाद, आषाढ़ शुक्ला पञ्चमी, उत्तरभाद्रपद, सोमवारको निकला था ।