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________________ चिक्कनसोगेका लेख ३३१ पट्टक्के हिरियकेरे केळगे बिट्ट गद्देगळेय मत्तलोन्दु ( भागेकी ३ पंक्ति में दानकी चर्चा है) [ महामण्डलेश्वर भुजबल-गंग पेम्मडि-बम्मे देवने मण्डलि- तीर्थंकी पट्टद बसदिके लिये ( उक्त) भूमिका दान किया और उसकी रानी गंगमहादेवी, उसका पुत्र मारसिंग देव, उसका छोटा भाई सत्य ( नशिय ) गंग, उसका छोटा भाई रक्कस गङ्ग, उसका छोटा भाई भुजबल-गंग, उसका पुत्र मारसिंग - देव ननिय गङ्ग-पेम्मंडि, इन सबने ( उक्त ) भूमि-दान किये । और अपनेद्वारा शासित नाइके गाँवोंमें पद्मावती देवीको ५ पणका उपहार दिया । यह उपहार तबतकके लिये जारी रहेगा जबतक आकाशमें सूर्य, चन्द्रमा और तारे चमकते हैं । ] [ EC, VII, Shimoga tl. n° 6] २२३ चिक्कहन सोगे - कन्नड़ [ विना काल-निर्देशका, पर सम्भवतः लगभग १०८० ई० ] [ जिन-बस्तिमें, नवरङ्ग-मण्टपके दरवाजेके ऊपर ] श्री - कोण्ड कुन्दान्वय देशिय गण पुस्तक-गच्छद श्री - दिवाकरनन्दि - सिद्धान्त - देवर ज्येष्ठ- गुरुगळप्प ( भट्टार) दामनन्दि-भट्टार सम्बन्दि ई - पनसोगेय चङ्गाळ्व-तीर्थदेल्ला बसदि-गळुमब्बेय बसदियुं तो- नाड बेळवनेय बसदियुं तत्समुदाय - मुख्यम् [ कोण्डकुन्दान्वय, देशि-गण तथा पुस्तक-गच्छके, दिवाकरनन्दि-सिद्धान्तदेवके ज्येष्ठ गुरु--- दामनन्दि भट्टारक के अधिकार में इस पनसोगेके चङ्गालनतीर्थकी सारी बसदियाँ ( मंदिर ) हैं । अब्मेय बसदि तथा तोरेनाडकी बसदि भी उनके प्रधान शिष्य-गणके अधिकार क्षेत्र में हैं । आगेका शिलालेख | [ इनसोगेमें, आदीश्वर-बस्तिके दाहिनी ओरके दरवाजेके ऊपर) नोट:-यह लेख ऊपरके ही लेख-जैसा है । उसमें कुछ फेरफार नहीं है । [ EC, IV, Yedatore tl. n° 23 and 27 ]
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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