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हुम्मचका लेख
२८१ पीरदेव भी सफल हैं । भागेके श्लोकोंमें उनकी समुद्रसे तुलना की गई है। पष्टण-स्वामीके पुत्र मछने इसे लिखा।
सिद्धान्त-रत्नाकरदिवाकरनन्दिने मूखों या बचों तथा विद्वानोंके सबके भवबोधार्थ कमडमें तत्वार्थसूत्रकी वृत्ति लिखी। पट्टणस्वामीके इष्ट देव जिन थे; उसके शासक वीर-शान्तर थे, उनके पिता अम्मण, गुरु दिवाकरनन्दि सिद्धान्तदेव थे। (जिनकी पूजाके लिये दैनिक सामग्री तथा लोगोंके कल्याणका वर्णन करनेके बाद ),-नोककी प्रशंसा।।
चन्द्रकीर्ति-भष्टारकके मुख्य शिष्य दिवाकरनन्दिसूरिकी प्रशंसा। उन्हींका अपर नाम सिद्धान्त-रवाकर था। उनके शिष्य सकलचन्द्र-मुनिनाथ थे। पट्टण-स्वामीनोक्कय्य-सेट्टिके पुत्र वैश्य-वंश-तिलक इन्दरकी प्रशंसा ।]
[EC, VIII, Nagar tl., n° 57]
२१३ हुम्मच;-संस्कृत तथा कन्नड़
[शक९९९=१०७७ ई.] [ हुम्मच में, पञ्चबस्तिके आँगनके एक पाषाणपर ] भद्रमस्तु जिन-शासनाय ॥
श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिन-शासनम् ।। शक-वर्ष ९९९ नेय पिङ्गळ-संवत्सरं प्रवर्तिसुत्तमिरे स्वस्ति समस्त-भुवनाश्रय श्री-पृथ्वी वल्लभ महाराजाधिराज परमेश्वर परम-भट्टारकं सत्याश्रय-कुळ-तिळकं चालुक्याभरणं श्रीमत्-त्रिभुवनमल्ल-देवर राज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धि प्रवर्धमानमा चन्द्रार्कतारं सलत्तमिरे । तत्पादपभोपजीवि ॥ समधिगतपञ्च-महा-शब्द महा-मण्डलेश्वरनुत्तर-मधुराधीश्वरं पट्टिपोम्बुञ्च-पुर-वरेश्वरं महोग्र-वंश-ललामं पद्मावती-लब्धवर-प्रसादासादित-विपुळ-तुळापुरुष-महादान-हिरण्यगर्भ-त्रयाधिक-दान वानरध्वज