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बेळगामिका लेख
मु श्रीमन्महामण्डलेश्वरं चा-ण्ड-रायरसर
नामादि- समस्त प्रशस्ति-सहितं बनवासि - पनिर -च्छासिरमनाळुत्तमिरल राजधानि - बलिगावेय नेलेवीडिनोळ शक वर्ष ९७० नेय सर्व्वधारी संवत्सरद ज्येष्ठ-शुद्धत्रयोदशी-आदित्यवारदन्दु जजाहुति - श्री - शान्तिनाथ -सम्बन्धियप्प चळगार-गणद मेघनन्दि-भट्टारकर - शिष्यरम्प केशवनन्दि - अष्टोयवासि-भळा(ट्टा)रर बसदिगे पूजा- निमित्तदिं धारा-पूर्वकं जिड्डुळिगे ७० र बयि राजधानि बळिगात्रेय पुल्लेय-बयलोळ् मेरुण्ड-गळेयोळ् कोइ गळ्दे मत्तरख्दु अदर सीमे ( सीमाओं की चर्चा )
धर्मेण शौर्य-सत्येन त्यागेन च महीतले । गण्ड-भेरुण्ड-सादृश्यो न भूतो न भविष्यति ॥ ( हमेशा के अन्तिम श्लोक )
बनवासे-देसदोळगण |
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जिन-निळयं विष्णु-निळयमीश्वर-निळ्यम् । मुनि-गण-निळयमित्रं रा- ।
यन बेसदिं नागव - विभु माडिसिदम् ॥
[ जिस समय, ( हमेशाकी चालुक्य उपाधियों सहित ), त्रैलोक्यमल देवका विजयराज्य प्रवर्द्धमान था :- बनवासि पुरवरका ईश्वर, महालक्ष्मीसे जिसने वर प्राप्त किया था, 'गण्ड-भेरुण्ड' 'जगदेकदानी' इन और दूसरे पदों सहित, महामण्डलेश्वर चामुण्डराय रायरस बनवासी १२००० पर शासन कर रहा था; - बळ्ळिगावे राजधानीमें, ( उक्त मितिको ), जजाहुति शान्तिनाथके साथ सम्बद्ध बळगार - गणके मेघनन्दि भट्टारकके शिष्य केशवनन्दि अष्टोपवासि-भट्टारकी बसदिमें पूजा करनेके लिये, जिड्डुळिगे - सत्तर में, राजधानी बलिगावे मृगवनमें, 'भेरुण्ड' दण्ड ( माप ) अनुसार, ५ मत धान ( चावल ) - क्षेत्रका दान किया । ( भूमिकी सीमाएँ ) ।