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माडिका लेख . इन्द्रराजने स्वर्गकी विभूति पाई-(अर्थात् मर गये)
[ EC, XII, Sira tl., n° 27.]
१६५ श्रवण बेल्गोला-संस्कृत [विना काल-निर्देशका ]
[जै. शि. ले. सं., मा. १.]
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अङ्गाडि-संस्कृत तथा काड़-भग्न
[काल लुप्त, पर लगभग ९९० ई० का] [ अङ्गाडि ( गोणीबीड परगना ) में, बसदिके पासके पाषाणपर ]
( सामने ).................."सुद पञ्चमी-बृहस्पति वारदन्दु खस्ति यम-स्वाध्याय-ध्यान-मौनानुष्ठान-परायणरप्प द्रविळ-संघद.... अद श्री-कोण्डकुन्दान्वयद त्रिकालमौनि-भट्टारक शिष्यर श्रीमदिरिवबेडेङ्गठन गुरुगळ् बिमलचन्द्र-पण्डित-देवर् सन्यासन-विधियिं मुडिपि मुक्तियनेरिददर ।। ( पीछे ) श्रुत-विमळादिचन्द्र...." श्रीमनु.............."पण्डिताहृयसु-विमळचन्द्र-मुनिः ॥
नमो विमळचन्द्राय कळाकळित-मूर्तये ।
सत्त्वात् सद्-बुधसेव्याय शान्तामृतमयात्मने ॥ श्री-विमळचन्द्र-पण्डित-देवर गुड्डी हवुम्ब्बेया तङ्गे शान्तियम्बे तम्म गुरुगळ्गे परोक्ष-विनयं गेग्दर् ॥
[(साधु-गुणोंसहित ), दविल-संघ, कोण्डकुन्दान्वय तथा पुस्तकगच्छके त्रिकालमौनि-भट्टारकके शिष्य,-श्रीमद् ईरिव-मेटेज.. के गुरु,
१ उसका काल और अंतिमावस्थाका कथन वही है जो श्रवणबेलगोला नं. ५७ के शिलालेखमें हैं । इन्द्रराज अन्तिम राष्ट्रकूट राजा था।