________________
मोह विधिकिरता, कोक और धर्म । मान के पांच भेद है-मति, कात, पति, मनः पर्षद और केवलज्ञान। इस सूची में विषिष्ट मान ममाव की ही बात की गई है। इसका स्पष्ट तात्पर्य यह है कि मक्ति संसार में मोहादिक कमों के कारण मटकता रहता है। जो साधक यह जान लेता है वही व्यक्ति भारमा होता है। सी को पानी और प्रवल कहा गया है। ऐसा साधक कर्मों से बंधा नहीं रहता । वह तो मामास बनकर विकल्प जास से मुक्त हो जाता है। यहाँ महिसा, सत्य माधि का विच मिलता है पर उसका वर्गीकरण नहीं दिखाई देता । उसी तरह कमों और के प्रभावों का वर्णन तो है पर उसके भेद-प्रभेदों का वर्णन दिखाई नहीं बेवा । कुन्धकुम्दाचार्य तक पासे-पाते इन धर्मों का कुछ विकास हा जो उनके अंधों में प्रतिविम्बित होता है।
कुन्दकुन्दाचार्य के बाद उनके ही पद चिन्हों पर प्राचार्य उमास्वाति, समन्तभव, सिरसेन दिवाकर, मुनि कार्तिकेय, मकसक, विद्यानन्द, मनन्तवीर्य, प्रभाचन्द्र, मुनि योगेनु मादि पाचार्यों ने रहस्यवाद का अपनी सामयिक परिस्थितियों के मनुसार विश्लेषण किया । यह दार्शनिक युग था । उमास्वाति ने इसका सूत्रपात किया पा मोर माणिक्यनन्दी ने उसे परम विकास पर पहुचाया था। इस बीच जैन रहस्य पाव वानिक सीमा में बड हो गया । इसे हम गैन दार्शनिक रहस्यवाद भी कह सकते हैं। दार्शनिक सिमान्तों के अन्य विकास के साथ एक उल्लेखनीय विकास पह मा किमाविकाल मे जिस बारिमक प्रत्यक्ष को प्रत्यक्ष कहा गया था पोर इन्द्रिय प्रत्वम की परोक्ष कहा गया था, उस पर इस काल मे प्रश्न-प्रतिप्रश्न खड़े हुए। सन्हें सुलझाने की दृष्टि से प्रत्यक्ष के दो भेद किये गये. साम्यावहारिक प्रत्यक्ष मौर पारमाषिक प्रत्यक्ष । यहां निस्षय नय मोर व्यबहार नय की दृष्टि से विश्लेषण किया गया । साधना के स्वरूप में भी कुछ परिवर्तन हुमा।
इस काल में वस्तुतः साधना का क्षेत्र विस्तृत हुमा मात्मा के स्वरूप की एवमीमांसामयोगात्मकता पर भषिक जोर दिया गया, कर्मों के भेद-प्रमेव पर चना और मान-प्रसारण को भी चर्चा का विषय बनाया गया। दर्शन के सभीबों पर तर्कनिष्ठ ग्रन्थो की भी रचना हुई। पर इस युग मे साधना का बह रूप,कहीं दिखाई देता को प्रारम्भिक काल मे था। साधना का प्र साथ उतना सामन्जस्य बैठता भी नहीं है । इसके बावजूद दर्शन के साथ साधना और भक्ति का निरसनहीं पाया बल्कि सुधारात्मक तत्वो के साथ बा भक्तिमान्दोलनका रूम बहस कता गया। इस काम में वानिक सवाल-पुथल बहुताई और क्रिया हकीमोर प्रतिवा बने सीं। "अप्पा सो परमप्पा" प्रया" सम्मान